पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४५८

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“ उसका परिचय रहस्यपूर्ण है, सम्भवत : एक ही व्यक्ति उसका परिचय जानता है , पर उसने होंठ सी रखे हैं । ___ " कौन व्यक्ति ? " " आर्या मातंगी। " “यह तो बड़ी अद्भुत बात है। तब फिर सम्राट् ने इस अज्ञात -कुलशील को इतना भारी दायित्व कैसे दे रखा है? " " चम्पा- युद्ध में उसने असाधारण रण - पाण्डित्य प्रदर्शन करके आर्य भद्रिक की प्रतिष्ठा बचाई थी । " " तो क्या सम्राट् ने उसे सेनापति अभिषिक्त किया है? " " नहीं , मगध- सेनापति चण्डभद्रिक ही है । " __ " भद्रिक के शौर्य से मैं अविदित नहीं हूं । भद्रिक मेरा सह - सखा है, मैं उसके सम्मुख असहाय हूं , वह महाप्राण पुरुष हैं , फिर भद्र, तू ऐसा क्यों कहता है कि श्रेणिक के पास अच्छे सेनापति नहीं हैं ? " सेनापति सुमन ने कहा। " भन्ते सेनापति, आर्य भद्रिक की निष्ठा निस्सन्देह ऐसी ही है , परन्तु मगध में उनकी - सी चली होती , तो मगध - सेना अजेय होती। परन्तु सम्राट् सदैव उन पर सशंक रहते हैं । वे समझते हैं कि कहीं चण्डभद्रिक उन्हें मारकर सम्राट न हो जाएं । जैसे अवन्ती - अमात्य ने राजा को मारकर अपने पुत्र प्रद्योत को राजा बना दिया । “ यही सत्य है आयुष्मान् ! मैंने उसका कौशल देखा है। परन्तु आयुष्मान् सोमप्रभ कहां है ? कुछ ज्ञात हुआ ? ” “ मगध में तो यही सुना है कि वह देश-विदेश में घूमकर ज्ञानार्जन कर रहा है। " “ मगध में जो सब कहते हैं वह तो सुना , परन्तु सन्धिवैग्राहिक जयराज क्या कहते हैं ? ” जयराज हंस दिए। उन्होंने धीरे-से कहा - “ जयराज कहता है, वह सशरीर , सदलबल वैशाली में उपस्थित है। " जयराज की बात सुनकर सब अवाक् होकर उनका मुंह ताकने लगे। सेनापति ने कहा “ यह क्या कहता है आयुष्मान्? सिंह ने उत्तेजित होकर कहा - “ ऐसा प्रबल शत्रु दल - बल - सहित वैशाली में उपस्थित है, और हमें इसका ज्ञान ही नहीं है! " " ज्ञान न होता तो कहता कैसे ? " “ वह है कहां ? " “ मधुवन की उपत्यका में , ” कुछ रुककर उसने कहा-“ दस्यु बलभद्र ही सोमप्रभ है। ” क्षण - भर के लिए सब स्तब्ध बैठे रहे । स्वर्णसेन विचलित हो गए । सिंह ने कहा- “ठीक है, मैंने भी सन्देह किया था । अच्छा , उसके पास सैन्य कितनी है ? " “ पचास सहस्र , कुछ अधिक ही । इनमें दस सहस्र उत्कृष्ट अश्वारोही हैं । वे सब टुकड़ी बांधकर दस्यु -वेश में सम्पूर्ण जनपद में फैले हुए हैं । दिन -भर वे पर्वत -कन्दराओं में