पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४५५

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मित्रबल प्राप्त होगा । हम उसे मूलस्थान की रक्षा में भी लगा सकते हैं और शत्रु के साथ युद्ध करने भी ले जा सकते हैं । हमें बहुत कम यात्रा करनी है। वैशाली में अब तूष्णी युद्ध के स्थान पर व्यायाम युद्ध ही मुख्यतया होगा , इसलिए शत्रु की मित्र सेना या आटविक सेना को , जो कि उसके नगर में आकर ठहरी हुई होगी , पहले अपनी मित्र - सेना के साथ लड़ाकर , फिर अपनी सेना के साथ लड़ाऊंगा।.... " इसके अतिरिक्त देव , हमारे पास विजित शत्र - सैन्य भी हैं । पहले मैं इसी को शत्र से भिड़ाऊंगा। दोनों में से जिस भी सैन्य का विनाश होगा , हमारा लाभ - ही - लाभ है । जैसे कुत्ते और सूअर के परस्पर लड़ने से दोनों में से किसी भी एक के मर जाने पर चाण्डाल का लाभ होता है, उसी प्रकार, देव ! " ___ इतना कहकर मागध महाबलाधिकृत भद्रिक हंस दिए । सम्राट भी हंस पड़े । उन्होंने कहा - “ यह तो ठीक है आर्य सेनापति , परन्तु हमारी आटविक सैन्य की व्यवस्था सर्वोत्तम होनी चाहिए। " “निस्सन्देह देव , मेरे चर भिन्न -भिन्न रूप में शत्रु- भूमि में फैले हुए वहां का राई रत्ती मानचित्र तैयार करने में जुटे हैं । वन , वीथी, उपत्यका नद, ह्रद , शृंग जहां जो हैं , उसका ठीक -ठीक चित्रण कर रहे हैं । कहां - कहां किन -किन युद्धोपयोगी वस्तुओं एवं व्यवहार्य पदार्थों का चय , उत्पादन , गोपन है, देख -भाल रहे हैं । ज्यों - ज्यों उनसे सूचनाएं मिलती जा रही हैं , हमारी आटविक सेना शिक्षित , अभिज्ञात होती जा रही है । वह भलीभांति सब मार्गों को जान गई है, उत्तम निर्धान्त पथ - प्रदर्शकों , सूत्रकों का सहयोग उसे प्राप्त है। शत्रु - भूमि में छद्म - युद्ध , पलायन - युद्ध और सम -युद्ध करने की उसे पूरी शिक्षा दी गई है । वह सब भांति आयुधों से सुसज्जित है। जैसे एक बिल्वफल दूसरे बिल्वफल के द्वारा टकराकर फोड़ दिया जाता है , उसी भांति हम आटविक बल को ले युद्ध प्रारम्भ कर देंगे और शत्रु के तृण , काष्ठ आदि छोटे- छोटे पदार्थों तक को उस तक न पहुंचने देंगे । बीच ही में नष्ट कर डालेंगे। " “ सुनकर सन्तुष्ट हुआ , आर्य सेनापति , और भी कुछ ज्ञातव्य है ? " ___ " हां देव , हमने औत्सुक्य सैन्य का भी संगठन किया है । यह एकनेता - रहित सेना है । इसमें भिन्न -भिन्न देशों के रहने वाले जन हैं । इसका काम शत्रु के देश में केवल लूटमार करना है । इसमें भरती होने के लिए किसी आज्ञा या अनुशासन की आवश्यकता नहीं है । नगर जनपद को लूटना , आग लगाना , खेतों और बाग - बगीचों को नष्ट करना, मार्गों और यातायात- साधनों को भंग करना तथा शत्रु के सम्पूर्ण राज्य में अव्यवस्था फैलाना ही इस सेना का कार्य होगा । इसके हमने दो भाग किए हैं - एक भेद्य , दूसरा अभेद्य । प्रतिदिन भत्ता लेकर अथवा मासिक हिरण्य नियमित वेतन के रूप में लेकर शत्रु- देश में लूटमार मचानेवाला भेद्य है । परन्तु दूसरी औत्साहिक सैन्य में विश्वस्त मागधजन ही हैं । यह अधिक सुगठित और सुसम्पन्न है। इस प्रकार देव , हमने यह सात प्रकार का बल सुसंगठित किया ___ “साधु सेनापति , साधु ! अब क्षय, व्यय तथा लाभ पर भी विचार करना आवश्यक " अवश्य देव , मेरी रणनीति यह है कि क्षय और व्यय की दृष्टि से जिस काल में