पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४५१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

से शत्रु पर टूट पड़े। दो को उन्होंने खड्ग से दो टूक कर डाला । एक ने आगे बढ़कर उनके मोढ़े पर करारा वार किया । अभयकुमार को पहचान कर जयराज आहत होने पर भी उस पर टूट पड़े। दो सैनिक पाश्र्व से झपटे , एक को उन्होंने बायें हाथ की कटार से आहत किया , दूसरा पैंतरा बदलकर पीछे हट गया । इसी समय जयराज ने अभयकुमार के सिर पर एक भरपूर हाथ खड्ग का मारा। वह मूर्छित होकर धड़ाम से धरती पर गिर गया । अब शत्रु सात थे। नायक के मूर्छित होने से वे घबरा गए थे, परन्तु जयराज भी अकेले तथा आहत थे। उनके मोढ़े से रक्त झर - झर बह रहा था । वे लड़ते - लड़ते ग्राम को लक्ष्य कर बढ़ने लगे। इसी समय अभयकुमार की मूर्छा भंग हुई , उसने चिल्लाकर कहा - "मारो, उसे मार डालो , देखो, बचकर भागने न पाए । ” शत्रुओं ने फिर उन्हें घेर लिया । अब वे चौमुखा वार करके खड्ग चला रहे थे । पर क्षण - क्षण पर विपत्ति की आशंका थी । अवसर पा उन्होंने एक शत्रु को और धराशायी किया । इसी समय ग्राम की ओर से चार अश्वारोही अश्व फेंकते आते उन्होंने देखे। उन्हें देख जयराज उत्साहित हो खड्ग चलाने लगे । शत्रु घातक वार कर रहे थे। कृषक तरुण ने कहा - " हम आ पहुंचे भन्ते राजकुमार! ” और साथियों को लेकर वह शत्रुओं पर टूट पड़ा । सब शत्रु काट डाले गए, अभयकुमार को बांध लिया गया । सब कोई ग्राम की ओर चले । इस समय रात एक दण्ड व्यतीत हो चुकी थी । ग्राम के निकट पहुंचकर जयराज ने कृषक युवक और उसके साथियों से कहा - “मित्रो , आपने मेरे प्राणों की रक्षा की है, इसके लिए तुम्हारा आभार ले रहा हूं , परन्तु मुझे एक अच्छा अश्व दो । " “ यह क्या भन्ते ! क्या आप रात विश्राम नहीं करेंगे? " नहीं मित्र , मुझे जाना होगा। इतना कह, उसे एक ओर ले जाकर स्वर्ण की एक भारी थैली उसके हाथ में रखकर कहा - “मित्र , तू रात - भर यहां रहकर भोर होते ही वैशाली की राह पकड़ना और वैशाली के संथागार में पहुंचकर यह मुद्रा किसी भी प्रहरी को दे देना , वह तुझे मुझ तक पहुंचा देगा। " “किन्तु आप आहत हैं भन्ते! " " परन्तु मित्र , कार्य गुरुतर है । " " तो मैं भी साथ हूं । " “नहीं मित्र, रात्रि - भर ठहरकर प्रात: चलना, पर राह में अटकना नहीं, तेरे पास मेरी थाती है। ” “समझ गया भन्ते , किन्तु यह स्वर्ण? " जयराज ने हंसकर कहा - “संकोच न कर मित्र ! वधूटी का कोई आभूषण बनवाना, ला अश्व दे। ” युवक ने ऊंची रास का अश्व श्यालक से दिला दिया । फिर उसने आंखों में आंसू भरकर कहा " तो भन्ते.... " " हां , मित्र मैं चला । " “ पर यह बन्दी ? " " इसकी यत्न से रक्षा करना और राजगृह भेज देना , पाथेय और अश्व देकर । यह