उसने बड़े ध्यान से देखा था कि सम्पूर्ण मागध जनपद सम्पन्न और निश्चिन्त है । उसे यहां वह युद्ध की विभीषिका नहीं दिखाई दी थी , जो वैशाली में थी । वे अत्यन्त आश्चर्य से यह देख चुके थे कि वहां जनपद में बेचैनी के कोई चिह्न न थे। कृषक अपने हल -बैल लिए खेतों की ओर आराम से जा रहे थे। रंगीन वस्त्रों से सुसज्जित ग्रामीण मागध बालाएं छोटे छोटे सुडौल घड़े सिर पर रखे आती- जाती बड़ी भली लग रही थीं । वे गाने गाती जाती थीं , जिनमें यौवन जीवन - आनन्द, आशा और मिलन -सुख के मोहक चित्र चित्रित किए हुए थे । जयराज को ऐसा प्रतीत हो रहा था , जैसे चिड़ियां चहचहाती हुई उड़ रही हैं । सम्पूर्ण मागध जनपद शत -सहस्र मुख से कह रहा था - " देखो , हम सुखी हैं , हम सन्तुष्ट हैं ! ” जयराज सोचते जाते थे। हमारे वज्जी गणतन्त्र से तो यह साम्राज्यचक्र ही अधिक सुविधाजनक प्रतीत होता है । यदि साम्राज्य - तन्त्र में आक्रमण- भावना न होती , तो निस्सन्देह राजनीति के विकसित -स्थिर रूप को तो साम्राज्य ही में देखा जा सकता है । वे चारों ओर आंख उघाड़कर देखते जा रहे थे, पीले और पके हुए धान्य से भरपूर खेत खड़े थे । आम्र के सघन बागों में कोयले कूक रही थीं । स्वस्थ बालक ग्राम के बाहर क्रीड़ा कर रहे थे। बड़े -बड़े हरिणों के यूथ खेतों की पटरियों पर स्वच्छन्द घूम रहे थे। ऋतु बहुत सुहावनी बनी थी । कोई - कोई ग्रामीण सस्ते टटुओं पर इधर - उधर आते - जाते दीख पड़ रहे थे। ये टटू बड़े मज़बूत थे। उनके मुंह से निकल पड़ा - “ वाह , ये तो बड़ी मौज में हैं । " साथी युवक ने जयराज के होंठ हिलते देखे। वह अपना टट्ट बढ़ाकर आगे आया और उसने कहा - “ आपने कुछ कहा भन्ते ! " ____ " हां मित्र , मैं सोचता हूं कि तेरी और मेरी दोनों की ससुराल यहां कहीं किसी गांव में होती ; और ये रंगीन घाघरे पहने हुए जो वधूटियां छोटे- छोटे जल के घड़ेसिरों पर रखे इठलातीं, बलखातीं, लोगों के मन को ललचातीं आ रही हैं , इनमें ये कोई भी एक - दो हमारी-तेरी वधूटियां होतीं तथा हम और तू साथ - साथ इसी तरह इन गांवों में से किसी एक के श्वसुरगृह में आकर आदर - सत्कार पाते, तो कैसी बहार होती ! " साथी का यह रंगीन विनोद सुनकर युवक खिलखिलाकर हंस पड़ा । उसने थोड़ा लजाते हुए कहा - " भन्ते , इधर ही उस ओर के एक ग्राम में मेरी ससुराल है और मैं वहां एक - दो बार जा चुका हूं । चलिए भन्ते , वहां चलें । " “ अच्छा, क्या वधूटी वहीं है? " “ वहीं है भन्ते ! " “ ओहो, यह बात है मित्र, तो देखा जाएगा, वह ग्राम यहां से कितनी दूर है? " “ यदि हम इसी प्रकार चलते रहे, राह में कहीं न रुके , तो सूर्यास्त तक वहां पहुंच जाएंगे। " " और यदि हम घोड़ों को सरपट छोड़ दें ? " । “ वाह, तब तो दण्ड दिन रहे पहुंच सकते हैं । " " परन्तु तुम्हारे श्वसुर और श्यालक कहीं मुझे गवाट में तो नहीं बन्द कर देंगे ? " " नहीं भन्ते , जब मैं उनसे कहूंगा कि आप राजकुमार हैं और सम्राट से बात करके आ रहे हैं , तो वे आपको सिर पर उठा लेंगे। मेरा श्यालक मेरा प्रिय मित्र भी है । " " तब तो बढ़िया भोजन की भी आशा करनी चाहिए ! "
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