पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४४५

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132 .गुह्य निवेदन एकान्त पाते ही मागध सन्धिवैग्राहिक अभयकुमार ने सम्राट से निवेदन किया - “ देव , वंचना हुई है। " “ कैसी, भणे ! " “ यह गणदूत नहीं, पारग्रामिक है; अथवा वह गणदूत नहीं, छद्मवेशी है। " " कैसे भद्र ! " " देव , जो गणदूत बनकर पान्थागार में राज - अतिथि बना हुआ था , उसे मैं भली भांति पहचानता हूं , उसने सभा में सम्राट् से भेंट नहीं की है। " " तब किसने की ? " “ एक अन्य पुरुष ने , जो पान्थागार से पृथक् एक प्रतीहार के घर टिका हुआ था । " “ क्या इसकी कोई सूचना महामात्य ने नहीं भेजी थी ? " “मुझे आर्य महामात्य की यही सूचना मिली थी कि प्रभंजन अगत्य की सूचना ला रहा है, परन्तु प्रभंजन का कोई पता ही नहीं लगता। न जाने वह कहीं लोप हो गया है । यह तो परिज्ञात है कि उसने इस पारग्रामिक का अनुसरण किया था । ” । _ “ यह अति भयानक बात है भणे ! इस पारग्रामिक और उस छद्मवेशी गणदूत दोनों को बन्दी बना लो । " “किन्तु देव , दोनों ही ने राजगृह से चुपचाप प्रस्थान कर दिया है। " सम्राट ने अत्यन्त कुपित होकर कहा “ तो भणे , मैं अभी नगरपाल और सीमान्त -रक्खक को देखना चाहता हूं और तुझे आदेश देता हूं , कि उस छद्मवेशी का अनुसरण कर और उसे जीवित या मृत , जिस प्रकार सम्भव हो , मेरे सम्मुख उपस्थित कर! " अभयकुमार सम्राट को अभिवादन कर तुरन्त चल दिया । सम्राट् चिन्तित भाव से अपने कक्ष में टहलने लगे । कुछ ही काल में नगरपाल और सीमान्त रक्खक ने आकर सम्राट को अभिवादन किया । सम्राट ने क्रुद्ध होकर पूछा “भणे, वैशाली के गणदूत का कैसा समाचार है? ” “ देव , उसने दो दण्ड रात्रि रहते राजगृह से प्रस्थान कर दिया , अब उसका कोई पता ही नहीं लग रहा है । " " उसे आने की अनुमति किसने दी ? " " देव , इसका निषेध नहीं था । इसी से ....। " “ और वह पारग्रामिक ? ” " देव , उसके सम्बन्ध में तो हमें कुछ सूचना ही नहीं है। " क्या मागध-व्यवस्था अब ऐसे ही राजपुरुष करेंगे? दोनों ही मृत जीवित जिस