पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४३७

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तो नहीं मिला है। " “ अस्तु; तू पत्नी की बात कह ! " __ " वही कह रहा हूं भन्ते , मैंने उसे सुखदास के पास एक सहस्र अश्व और पांच सहस्र चीनांशुक क्रय करने को भेजा था । " “ यह तो मैंने सुना , इसके बाद ? " " इसके बाद वह पाजी सुखदास , ऐसा प्रतीत होता है, मेरी स्त्री पर मोहित हो गया और उसे एकान्त में ले जाकर उसने कहा - मूल्य लेकर तो एक भी अश्व, एक भी चीनांशुक नहीं दूंगा , परन्तु हां , यदि तू आज रात मेरी सेवा में रहे, तो पांच सौ घोड़े और एक सहस्र चीनांशुक तेरी भेंट है। " " " और तेरी चरित्रवती स्त्री ने स्वीकार कर लिया ? " ___ “ नहीं भन्ते , उस साध्वी ने कहा -मैं पति से पूछ लूं , वह आज्ञा देगा तो मैं तेरी बात रख लूंगी। " “ सो तैने आज्ञा दे दी ? " | “ पांच सौ सैन्धव अश्व और एक सहस्र चीनांशुक भन्ते , कम नहीं होते । ऐसे मुर्ख भी बार- बार नहीं मिलते । मैंने सीधे स्वभाव कह दिया यदि एक ही रात्रि में पांच सौ अश्व और सहस्र चीनांशुक मिलते हैं , तो दोष नहीं है, तू ऐसा ही कर । " __ “ और तेरी वह साध्वी स्त्री तेरा आदेश मानकर वहां चली गई ? " “ यही बात हुई भन्ते, अब अश्व और चीनांशुक तो उसने भेज दिए ; पर स्वयं नहीं आ रही है। " “ उसने कुछ सन्देश भी भेजा है ? " । “ सन्देश भेजा है भन्ते , उसने कहलाया है कि सत्त्वरहित और लोभी पति से तो वह पति अच्छा है, जो एक रात्रि के पांच सौ अश्व और सहस्र चीनांशुक दे सकता है। " “ अब तेरा क्या कहना है ? " “मैं कहता हूं कि यह मात्र विनोद- वाक्य है। ऐसा वह बहुत बार कह चुकी है। उसका स्वभाव भी हंसोड़ है। " " तेरा अनुमान यदि सत्य हो तो ? “ तो भन्ते राजकुमार, मेरी स्त्री मुझे दिलवा दीजिए। उसके बिना मैं जीवित नहीं रह सकूँगा , भूखों मर जाऊंगा। " “ यह तो सत्य है, जब तू भूखों मर जाएगा तो जीवित कैसे रह सकता है? " " भन्ते , मैं प्रतिष्ठित पुरुष हूं। " “ तो प्रतिष्ठित पुरुष, अभी तू जाकर शयन कर, सुख - स्वप्न देख , भोर होने पर मैं सुखदास के अश्वों को और तेरी उस साध्वी पत्नी को भी देखंगा । " । प्रतीहार कुछ सन्तुष्ट होकर मन - ही - मन बड़बड़ाता हुआ चला गया ।