पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४३०

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इसके बाद उन्होंने अपने एक दस्यु को कुछ संकेत किया । उसने एक संकेत शब्द उच्चारित किया । दस्यु - सैन्य जहां थी , वहीं युद्ध रोककर स्तब्ध खड़ी रह गई । सूर्यमल्ल ने श्वेत पताका हवा में फहराते हुए अपने सेनापतियों को तुरन्त युद्ध से विरत कर दिया तथा नायक को लेकर वह दस्युराज बलभद्र की सेवा में आ उपस्थित हुए । दस्युराज बिना एक भी शब्द कहे चुपचाप पूर्व अनुक्रम से टेकरी से उतरकर एक पर्वत - कन्दरा में घुस गए । कन्दरा अधिकाधिक पतली होती गई । तब सब कोई अश्व से उतरकर अपने - अपने अश्व की रास थाम पैदल चलने लगे। अन्तत : वे एक विस्तृत हरे - भरे मैदान में जा पहुंचे। पूर्व दिशा में उज्ज्वल आलोक फैल गया था । तब वैशाली के इन वैभवशाली जनों ने देखा कि उस मैदान में एक अत्यन्त सुव्यवस्थित स्कंधावार निवेश स्थापित है , जिसमें पचास सहस्र अश्वारोही भट युद्ध करने को सन्नद्ध उपस्थित हैं । ____ एक विशाल पर्वत - गुहा में सुकोमल उपधान और रत्न - कम्बल बिछे थे। सब सुख साधनों से गुफा सम्पन्न थी । अम्बपाली को एक आसन पर बैठाते हुए दस्यु ने कहा - “ देवी अम्बपाली और मित्रगण, तुम्हारा इस दस्युपुरी में स्वागत है। आज तुम मेरे अतिथि हो । आनन्द से खाओ-पिओ। रात के दु: स्वप्न को भूल जाओ। " उसने संकेत किया । साम्ब चुपचाप आ खड़ा हुआ । उसने अम्बपाली की ओर संकेत करके कहा - “ साम्ब , देवी बहुत खिन्न हैं , रात - भर के जागरण से ये थक गई हैं तथा श्रमित हैं । जा , इनकी यथावत् व्यवस्था कर दे। ” __ उसने देवी से, अपने साथ दूसरी गुहा में चलने का अनुरोध किया । देवी के चले जाने पर विविध मद्य, भुना मांस और शूल्य लाकर दासों ने अतिथियों के सम्मुख रख दिए । लिच्छवि राजपुरुष एक - दूसरे को आश्चर्य से देखकर खाने -पीने और अदृष्ट में जो भोगना बदा है, भोगने की चर्चा करने लगे। परन्तु मुख्य बात यही थी , जो सब कह रहे थे - “ दस्यु अद्भुत है , अप्रतिम है, महान् है! "