पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४२०

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सूर्यमल्ल ने हंसकर कहा- “ अरे मित्र, यह कौन बड़ी बात है! आज सूर्योदय से पूर्व ही तुम अपनी अभिलाषा पूरी कर लेना। " देवी अम्बपाली ने कहा - “मित्रो, क्या तुममें से किसी ने दस्यु को देखा भी है? " " नहीं , नहीं देखा है । ” " तो यदि वह छद्मवेश धारण करके यहां आया हो , आकर पान - गोष्ठी का आनन्द लूट रहा हो तो ? " " तो , यह तो बड़ी दूषित बात होगी । ”– सूर्यमल्ल ने कहा । " दूषित किसलिए प्रिय? ” " हम नागरिकों के साथ एक दस्यु पान करे! " " परन्तु मैं सोचती हूं भद्र , कि किसी भांति हम जान जाएं कि वन्य पशु -पक्षी हम लोगों के विषय में क्या सोचते होंगे , तो सम्भव है, हम जानकर आश्चर्य करें कि वे हम भद्र नागरिकों में बहुत - से दोषों का उद्घाटन कर लेंगे। " “किन्तु यदि देवी उस दस्यु को एक बार देख पाएं ... ? " " तो मैं उसे स्वयं एक पात्र भरकर दूं और अपने को प्रतिष्ठित करूं । ” “ प्रतिष्ठित ? ” सूर्यमल्ल ने चिढ़कर कहा । " क्यों नहीं मित्र , अन्तत : वह एक साहसिक और वीर पुरुष तो है ही । " “ यह तो तभी कहा जा सकता है, जब वह एक बार हमारे खड्ग का पानी पी जाय । ” “ तो जब उसने वजीभूमि में चरण रखा है, तो एक दिन यह होगा ही और यदि सूर्यमल्ल की भविष्यवाणी सत्य है तो आज ही । किन्तु यह बलभद्र है कौन ? ” “ आपके इस प्रश्न का उत्तर जाननेवाले को गणपति ने दस सहस्र स्वर्ण भार देने की घोषणा की है। ” " तो यह भी हो सकता है भद्र, कि यह दस सहस्र स्वर्णभार उस सूचना देनेवाले पुरुष के सिर का ही मोल हो । " इसी समय कक्ष के एक ओर से किसी ने शान्त -स्निग्ध किन्तु स्थिर वाणी में कहा " देवी अम्बपाली अपने हाथों से एक पात्र मद्य देकर यदि अपने को सुप्रतिष्ठित करना चाहें तो यह उनके लिए सर्वोत्तम अवसर है! " सबने आश्चर्यचकित होकर उधर देखा । स्तम्भ की ओट से एक दीर्घकाय , बलिष्ठपुरुष नग्न खड्ग हाथ में लिए धीर गति से आगे बढ़ रहा था । उसका सर्वांग काले वस्त्र से आवेष्टित था और मुख पर भी काला आवरण पड़ा हुआ था । यह अतर्कित - असम्भाव्य घटना देखकर क्षण - भर के लिए सब कोई विमूढ़ हो गए । अम्बपाली उस कण्ठ - स्वर में कुछ-कुछ परिचित ध्वनि पाकर सन्देह और उद्वेग से उस आगन्तुक को देखने लगीं। इसी समय सूर्यमल्ल ने खड्ग लेकर आगे बढ़कर कहा - “ यदि तुम वही दस्यु हो , जिसकी हम अभी चर्चा कर रहे थे, तो तुम्हें इसी क्षण मरना होगा । " “ जल्दी और व्यवस्था -क्रम भंग मत करो मित्र सूर्यमल्ल ! मैं वही हूं , जिसकी तुम लोग चर्चा कर रहे थे। परन्तु मैं तुमसे अभी क्षण - भर बाद बात करूंगा, पहले देवी अम्बपाली एक चषक मद्य अपने हाथों मुझे प्रदान कर सुप्रतिष्ठित हों और मुझे आप्यायित