मध्य रात्रि व्यतीत होने लगी । पान - आहार समाप्त होने पर आया । अनावश्यक भीड़ छंट गई । केवल बड़े - बड़े सामन्तपुत्र और सेट्टिपुत्र अब निराला पा अपने - अपने उपधानों पर उठंग गए । उनकी अलस देह, अधमुंदी आंखें और गद्गद वाणी प्रकट कर रही थी कि वे आज इस लोक में नहीं , प्रत्युत मायापूरित किसी अलौकिक स्वर्गलोक में पहुंच चुके हैं । मद्य की झोंक में युवराज स्वर्णसेन ने कहा - " देवी, इस परमानन्द के अवसर पर एक ही अभिलाषा रह गई । " । __ " तो समर्थ युवराज, अब उसे किस अवसर के लिए अवशिष्ट रखते हैं ? पूरी क्यों नहीं कर लेते ? " “ खेद है, पूरी नहीं कर सकता। " उन्होंने हाथ का मद्यपात्र खाली करके मदलेखा की ओर बढ़ा दिया । मदलेखा ने उसमें और मद्य ढाल दी । अम्बपाली ने मन्द मुस्कान करके कहा - “ क्यों नहीं युवराज ? युवराज ने ठण्डी सांस लेकर कहा - “ ओह , बड़ी अभिलाषा थी । " " हाय - हाय ! ऐसी अभिलाषा की वस्तु यों ही जा रही है । परन्तु युवराज प्रिय , क्या उसकी पूर्ति एक बार परिपूर्ण छलकते मद्यपात्र को पीने से नहीं हो सकती ? ” “ नहीं - नहीं , सौ पात्रों से भी नहीं, सहस्र पात्रों से भी नहीं । ” यह कहकर उन्होंने वह प्याला भी रिक्त करके मदलेखा की ओर बढ़ा दिया । मदलेखा ने देवी का इंगित पा उसे फिर आकट भर दिया । देवी ने कृत्रिम गाम्भीर्य धारण करके कहा- “ प्रिय सूर्यमल्ल , प्रियव्रत , अरे, प्राणसखाओं, यहां आओ, भाई युवराज की एक अभिलाषा आज अपूर्ण ही रह जाती है , वह सौ मद्यपात्र पीने से भी नहीं पूरी हो रही है। ” दो - चार मित्र अपने - अपने मद्यपात्र लिए हंसते हुए वहां आ जुटे । स्वर्णसेन खाली मद्यपात्र हाथ में लिए ठण्डी सांस ले रहे थे । सोमदत्त ने कहा - " क्या मेरा यह पात्र पीने से भी नहीं मित्र ? " " नहीं रे नहीं ; ओफ ! अन्तस्तल जला जा रहा है । " “ अरी ढाल री , दाक्खारस ढाल , युवराज का अन्तस्तल जला जा रहा है । ” देवी अम्बपाली ने हंसकर मदलेखा से कहा । सभी मित्र हंसने लगे। प्रियवर्मन् ने कहा - “ युवराज की उस अपूर्ण अभिलाषा के समर्थन में एक - एक परिपूर्ण पात्र और पिया जाय। " सबने पात्र भरे , स्वर्णसेन ने भी रिक्त पात्र मदलेखा की ओर बढ़ा दिया । मदलेखा ने दाक्खारस ढाल दिया । सोमदत्त ने कहा - “मित्र युवराज, आपकी वह अभिलाषा क्या है ? " “ यही कि इस समय दस्यु बलभद्र यदि यहां आमन्त्रित किया गया होता , तो इस मद्य में अपने खड्ग को डुबोकर उसके वक्ष के आर -पार कर देता। " ___ " तो देवी अम्बपाली , आपने यह अच्छा नहीं किया, दस्यु बलभद्र को निमन्त्रित करना ही भूल गईं! " " भूल नहीं गई प्रिय, मैं तो केवल नागरिकों को ही निमन्त्रित कर सकती हूं, दस्यु बलभद्र तो अनागरिक है। " अम्बपाली ने हंसकर कहा ।
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