पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४१३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

“ इसीलिए देव - दैत्य - पूजित श्रीमन्थान भैरव का इस लोक के मर्त्य शरीर में आगमन हुआ ! ” " नहीं रे गौड़पाद,मैं कौतूहलाक्रान्त भी हूं। " " कैसा देव ? " “ अम्बपाली का रे, अभिरमणीय है न ? " " है तो , किन्तु काकिणी नहीं है। " " देख लिया है तूने ? ” " ठीक देखा है देव ? " " तो दर्शनीय ही सही! " " दर्शनीय तो है । " " देखूगा , फिर। " “ एक और स्त्री है देव ! " " काकिणी है ? " " है, किन्तु अभिरमणीय नहीं है। " " क्यों रे ? " "विषकन्या है। " “ अच्छा - अच्छा , उसका मदभंजन करूंगा। कौन है वह ? " “ मागधी है, छद्मवेश में यहां भद्रनन्दिनी वेश्या बनी बैठी है। " " अभिरमण करूंगा। " “ मर जाएगी देव ! ” “ मरे , युद्ध कब होगा ? " " नातिविलम्ब। ” “ उत्तम है, रक्तपान करूंगा, कुरु -संग्राम के बाद रक्तपान किया ही नहीं है । कितनी सेना का विनाश होगा ? " | “ सम्भवत : तीन अक्षौहिणी देव ! " ___ "बहुत है, आकण्ठ तृप्ति होगी । सेट्टिपुत्र मृदुल भाव से मोहक मुस्कान कर आसन से उठ खड़ा हुआ। गौड़पाद ने पृथ्वी में गिरकर प्रणितपात किया , सेट्ठिपुत्र ने हंसकर कहा - " रहस्य ही रखना, गौड़पाद। " “ जैसी देव की आज्ञा! " वह देवजुष्ट सेट्ठिपुत्र चल दिया । गौड़पाद बद्धांजलि खड़े रहे ।