पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४११

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पारद और पारद से सुवर्ण बना सकते हैं , तो फिर पारद ही से सुवर्ण क्यों न बना लिया जाए ? पारद तो सुलभ है। " । " है, किन्तु सौम्य, जब नाग- परमाणु विघटित होगा तो हमें पारद- परमाणु उसमें विघटित प्राप्त होगा , पारद में वह संगठित है । अत : उसे विघटित करने में हमें बड़ी बाधा यह है कि वह विघटित होते - होते और ताम्र में लय होते - होते , रश्मिपुञ्ज - क्षेपण - प्रक्रिया के कारण उड़ जाता है । उसे अग्नि -स्थिर करने में अधिक परिश्रम करना पड़ता है, इसी से नाग परमाणु विघटित करके और उसे पारद - परमाणु का रूप देकर ताम्रविलय करना अधिक उपादेय है । फिर वह नाग पारद -विघटित परमाणु विद्युत - सत्त्व एवं रश्मिपुञ्ज प्रतिवाहति हो शक्ति बल और अवस्थान के अनुक्रम से शत - सहस्र- लक्ष कोटि वेधी हो जाता है। " “किन्तु यदि पारद ही को अग्नि -स्थिर किया जाए? " __ " तो पहले उसे क्षार, अम्ल , लवण, मूत्र , पित्त , वैसा , विषवर्ग में स्नान कराना होगा , उसे केंचुली - रहित और बुभुक्षित करना होगा । बुभुक्षित होने पर उसे स्वर्णजीर्ण कराकर उसका बीजकरण करना होगा। तब वह भी शत - सहस्र - लक्ष- कोटि वेधी होगा । उसके लिए उसे खोटबद्ध करना होगा! फिर वह ताम्र -तार - वंग को वेध करेगा । " “ लोह - वेध क्या रसायन की इति है भगवन्? " “नहीं पुत्र , वह तो परीक्षण-माप है। रस सिद्ध होने पर जब देखो कि उसने लोहवेध कर लिया तब उसे भक्षण करो, देहवेध सिद्ध हो गया । " " देहसिद्ध पुरुष के क्या लक्षण हैं भगवन्? " ___ “ पुत्र , देहसिद्ध पुरुष अत्यक्त - शरीर होते हैं , यह शरीर ही भोगों का आश्रयस्थल है , परन्तु वह स्थिर नहीं है। यह देहलोहसिद्ध रसायन ही उसे स्थैर्य देता है, काष्ठौषधनाग में , नाग वंग में , वंग ताम्र में , ताम्र तार में , तार स्वर्ण में और स्वर्ण पारद में लय होता है , सो यह सिद्ध धातुवेधी - शरीर- वेधी पारद शरीर को अजर - अमर करता है,स्थिर- देह पुरुष अभ्यासवश अष्टसिद्धियों का अनुष्ठाता, परम ज्योति -स्वरूप , अमल, गलितानल्प -विकल्प , सर्वार्थविवर्जित होता है । उसकी भृकुटि के मध्य में प्रकाश - तत्त्व और विद्युत्सत्त्व अधिष्ठित हो जाता है। उसी में दृष्टि को केन्द्रित करके वह सचराचर सब जगत् को प्रत्यक्ष देख पाता है । वह सब क्लेशों से रहित , शान्त और स्वयं वंद्य और अमितायु हो जाता है । " ___ “किन्तु भगवन् , क्या वृद्धावस्था और मृत्यु जीवन का अवश्यम्भावी परिणाम नहीं ? क्या वह नियत समय पर शरीर को आक्रान्त नहीं करती ? क्या वह किसी प्रकार टाली जा सकती है? ” तिब्बत के पीतकेशी एक वटुक ने प्रश्न किया । आचार्य ने कहा - “ सौम्य , वृद्धावस्था और मृत्यु एक रोग है, शरीर के अवश्यम्भावी परिणाम नहीं । वे युक्ति और रसायन द्वारा टाले जा सकते हैं । शरीर जिन अवयवों से बना है, उनमें अनेक धातु और खनिज पदार्थ हैं , जिनका शरीर के पोषण में निरन्तर व्यय होता रहता है। सौम्य , युक्ति से इन पदार्थों के मूल अवयव शरीर में जीर्ण करने से यही शरीर चिरकाल तक स्थिर अमितायु हो जाता है ।