पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३९६

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"तीसरा सूत्र यह है कि हमें कोष, अन्न और सैन्य का भलीभांति संगठन और व्यवस्था करनी चाहिए । " महाबलाधिकृत ने कहा - “मुझे योजना स्वीकृत है। आयुष्मान् नागसेन का कथन यथार्थ है । मैं प्रस्ताव करता हूं कि स्वयं नागसेन ही मगध जाएं । ” “नहीं भन्ते , यह ठीक नहीं होगा , मैं यहां नियुक्त हूं। मेरी अनुपस्थिति तुरन्त प्रकट हो जाएगी। मेरा प्रस्ताव है कि मित्र जयराज जाएं । " ___ “मैं स्वीकार करता हूं; परन्तु योजना मेरी अपनी होगी । प्रकट में कोई अन्य व्यक्ति बहुत - सी उपानय-सामग्री लेकर चले और मैं गुप्त रूप में । दूत का जाना वर्षकार की सम्मति से उनके लिए सम्राट से अनुनय करने के लिए हो । हम लोग सब भांति से दबे हुए हैं , भयभीत हैं , असंगठित हैं , असावधान हैं , यही भाव प्रकट हो । मेरी अनुपस्थिति भी प्रकट न हो । मेरे स्थान पर मेरा मित्र काप्यक , मेरा अभिनय करे। ” ___ “ यह उत्तम है आयुष्मान्! ” – महाबलाधिकृत सुमन ने कहा - " सैन्य - संगठन का कार्य मैं आयुष्मान् सिंह को सौंपता हूं । “ मैं स्वीकार करता हूं। मेरी भी अपनी स्वतन्त्र योजना होगी और अभी वह गुप्त रहेगी। ” __ " तो ऐसा ही हो आयुष्मान्! अब रह गया कोष , धान्य और साधन; इसके लिए आयुष्मान् भद्रिय उपयुक्त हैं । फिर हम सबकी सहायता करेंगे । आयुष्मान् जयराज एक मास में लौट आएं, तभी दूसरी बार मोहनगृह - मन्त्रणा हो । - गणपति सुनन्द ने कहा तथा मन्त्रणा समाप्त हुई ।