पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३९४

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" ओह, ऐसी भयंकर सूचना ! क्या तुमने उसके सम्बन्ध में यथातथ्य जाना है । भद्र? " __ “भन्ते, मैं उससे मिल लिया हूं। अब तक जो लिच्छवि उसके द्वारा मरे नहीं, यह उसकी कृपा है; नहीं तो कोई दिन ऐसा नहीं जाता, जिस दिन वह सौ सुवर्ण देनेवाले किसी लिच्छवि तरुण का अपने आवास में स्वागत न करती हो । यह भी सम्भव है कि वह किसी महती योजना की प्रतीक्षा में है। " “ यह तो अति भयंकर बात है आयुष्मान् ! नागसेन ने कहा- “ अभी अर्थसचिव भद्रिय और महाअट्टवी - रक्खक सूर्यमल्ल भी कुछ सूचनाएं देंगे । " “ आयुष्मान् भद्रिय कहें ! " “ भन्ते, आपको ज्ञात है कि चम्पा का कोई धनकुबेर कृतपुण्य सेट्ठि गृहपति अन्तरायण में कहीं से आकर बस गया है । " “ उसके ऐश्वर्य और सम्पदा तथा वाड़व अश्वों के सम्बन्ध में मैंने सुना है; उसकी क्या बात है ? " “ वह भी इसी कुटिल ब्राह्मण का चर है, वह देश - देशान्तरों से वैशाली निगम के नाम हंडियां मोल लेकर संचित कर रहा है । उसका विचार किसी भी दिन ब्राह्मण का संकेत पाते ही वैशाली के सब सेट्ठियों के टाट उलटवाने का है। " “ यहां तक भद्र ? " “ अब भन्ते , सूर्यमल्ल की सूचना भी सुनें ! " " आयुष्मान् बोलें ! ” " भन्ते , मुझे यह सूचना देनी है कि जिस दस्यु बलभद्र के आतंक से आजकल वैशाली आतंकित है, वह भी एक मागध सेनानी है और उसके अधीन दस सहस्र साहसी भट मधुवन में छिपे हैं एवं पचास सहस्र सैन्य वज्जीगण के विविध वन्य प्रान्तों में गुप्त रूप से व्यवस्थित हैं । उसके सेनानायक, सामन्त और नायकगण वैशाली के उत्तर - क्षत्रिय - कुण्डपुर सन्निवेश , वाणिज्य- ग्राम , चापाल - चैत्य , सप्ताह- चैत्य , बहुपुत्र - चैत्य , कपिना - चैत्य आदि स्थानों में छद्मवेश और छद्म नामों से बस रहे हैं । ” ___ “ तो इसका अभिप्राय यह है कि अब वैशाली में कौन शत्रु है और कौन मित्र , इसका जानना ही कठिन है! ” – महाबलाधिकृत सुमन ने कहा । " भन्ते ! ” नागसेन ने कहा - “ अब वैशाली विजय करने को सम्राट् के यहां आने की और सैन्य - अभियान की आवश्यकता ही नहीं है। जो कुछ हो गया है, वैशाली को जय करने के लिए वही यथेष्ट है। " अब सेनापति सिंह ने खड़े होकर कहा " भन्ते गणपति , यह आपने शत्रुओं की विकट योजना का एक अंश सुना , अब अपने बल को भी देखिए । वैशाली का सम्पूर्ण राष्ट्र आज मदिरा और विलास में डूबा हुआ है । उसके प्राण अम्बपाली के आवास में पड़े रहते हैं । ये सेटिजन , जो असंख्य सम्पदा के साथ सम्पूर्ण व्यापार- विनिमय के भी एकमात्र स्वामी हैं , आवश्यकता पड़ने पर हमें युद्ध में कोई सहायता नहीं देंगे। हमारे कोष की दशा शोचनीय है, अर्थसचिव इस पर प्रकाश डाल सकते