पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३९१

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उदाहरण हमारे सम्मुख नहीं है? " महासेनापति सुमन ने कहा - “ भन्तेगण सुनें , जो संकट आज हमारे सम्मुख है, ऐसा वैशाली पर कभी नहीं आया था । शत्रु को यही छिद्र मिल गया है, कि हमारी सेना और कोष अव्यवस्थित और अपर्याप्त हैं , तभी वह साहस कर रहा है; और यह झूठ भी नहीं है । हमें नियमित राजस्व नहीं मिल रहा है। दुर्ग -प्राकारों और नगर -प्राकारों का भी संस्कार कराना आवश्यक है। परिखा में जल नहीं है और उसमें मिट्टी भर गई है, वे खेत हो रही हैं । " भद्रिय ने खड़े होकर कहा - “ भन्तेगण सुनें , सेट्टि और सार्थवाह परिषद् को दस कोटि सुवर्ण धन ऋण दे और यह ऋण उन्हें बारह वर्ष में चुकाया जाएगा । मैं आशा करता हूं कि वे गण को प्रसन्नता से धन देंगे । " सिंह ने खड़े होकर कहा - “ भन्तेगण सुनें , धन की व्यवस्था हो जाए तो और विषयों का युद्ध- उद्वाहिका अपने मोहनगृह के गुप्त अधिवेशनों में निर्णय करे , जिससे शत्रु को छिद्रान्वेषण का अवसर न मिले । ” ___ इस पर कोलियगण राजप्रमुख विश्वभूति ने कहा - “ कासी - कोलों के अठारह गणराज्य इस युद्ध में अर्ध अक्षौहिणी सेना और तीन कोटि सुवर्ण- भार देंगे। अपने सैन्य की रसद -व्यवस्था वे स्वयं करेंगे । सन्निपात ने प्रसन्नता प्रकट की । मल्लों के प्रमुख रोहक ने कहा - “ तो एक सहस्र हाथी , इतने ही रथ , बीस सहस्र अश्वभट और पचास सहस्र पदाति मल्लों के नौ गणराज्य देंगे तथा अपना सब व्यय- भार उठाएंगे । मल्ल युद्ध- उद्वाहिका को अपने सम्पूर्ण तटों , दुर्गों और युद्धोपयोगी स्थलों को उपयोग करने का भी अधिकार देते हैं । " महाबलाधिकृत ने अब युद्ध- उद्वाहिका का इस प्रकार संगठन किया " महाबलाधिकृत सुमन सेनापति , सिंह उपसेनापति , नौबलाध्यक्ष गान्धार काप्यक , राजस्व- कोष और युद्धोत्पादन भद्रिय , रसदाध्यक्ष स्वर्णसेन , प्रान्तकोष्ठ रक्षक सूर्यमल्ल । कासीकोल -प्रतिनिधि विश्वभूति और मल्ल - प्रतिनिधि रोहक । " इसके बाद सन्निपात- भेरी का कार्य समाप्त हुआ ।