तब गणपति ने कहा - “ परिषद् में सेनापति पद के लिए थोड़ा मतभेद है। इसलिए छन्द लेने की आवश्यकता है । भन्तेगण, आप सावधान हों । शलाकाग्राहक छन्द शलाकाएं लेकर आपके पास आ रहे हैं । उनके एक हाथ की डालियों में लाल शलाकाएं हैं , दूसरी में काली। लाल शलाका हां के लिए है और काली नहीं के लिए । अब जो आयुष्मान् मेरे मूल प्रस्ताव का अनुमोदन करते हैं , अर्थात् सिंह को प्रधान सेनापति - पद देना चाहते हैं , वे लाल शलाका लें । और जो आयुष्मान् सिंह द्वारा संशोधित प्रस्ताव के अनुसार सेनापति सुमन को चाहते हैं , वे काली शलाका लें । ” सिंह ने फिर खड़े होकर कुछ कहने की इच्छा प्रकट की । गणपति ने कहा - “ आयुष्मान् फिर कुछ कहना चाहता है , कहे । " सिंह ने कहा - “ भन्तेगण सुनें । मेरा प्रस्ताव गणपति के मूल प्रस्ताव का विरोधी नहीं है। सेनापति सुमन हमारे श्रद्धास्पद, वृद्ध अनुभवी सेनानायक हैं । उनका अनुभव बहुत भारी है। उन्होंने बड़े- बड़े युद्ध जीते हैं । वैशाली के लिए उनकी सेवाएं असाधारण हैं । इसलिए हम सब तरुणों को उनके वरदहस्त के नीचे युद्ध करना सब भांति शोभा - योग्य है , उचित भी है । कम - से - कम मेरे लिए उनकी अधीनता में युद्ध करना सेनापति होने की अपेक्षा अधिक सौभाग्यमय है । इससे मैं अनुरोध करता हूं कि आप भन्तेगण काली शलाका ही ग्रहण करें । ” परिषद् में फिर ‘ साधु -साधु की ध्वनि गूंज उठी। शलाका - ग्राहक छन्दशलाका लेकर एक - एक सदस्य के पास गए । सबने एक - एक शलाका ली । लौटने पर गणपति ने गिना । काली कम लौटी थीं । गणपति ने घोषित किया - " काली शलाकाएं कम लौटी हैं । तो भन्ते गण , आयुष्मान सिंह के प्रस्ताव से सहमत हैं । तब सेनानायक सुमन सम्पूर्ण संयुक्त सेना के सेनापति निर्वाचित हुए । ___ “ अब भन्तेगण सुनें , प्रथम बार मैं राजस्व, कोष और युद्धोत्पादन के लिए आयुष्मान् भद्रिय का प्रस्ताव करता हूं । " । ___ फिर तीन बार गणपति ने परिषद् की स्वीकृति लेने पर कूटनीति और गुप्त विभाग का अधिपति संधिवैग्राहिक जयराज को बनाया । इसके बाद सिंह उपसेनापति, गान्धार काप्यक नौसेनापति , आगार- कोष्ठक स्वर्णसेन नियत हुए। यह सब कार्य - सम्पादन होने पर गणपति ने कहा - “ भन्तेगण सुनें , हमने युद्ध उद्वाहिका का संगठन कर लिया । अब हमें धन और अन्न की आवश्यकता है । राजकोष में युद्ध- संचालन के योग्य यथेष्ट धन नहीं है । यदि राजकोष का स्थायी कोष सन्तोषजनक न हुआ तो इसका परिणाम अच्छा न होगा । " सूर्यमल्ल ने खड़े होकर कहा - “ तब धन आएगा कहां से ? धन के बिना शस्त्र , नौका , अश्व और दूसरे उपादान कैसे जुटेंगे ? " " नहीं जुटेंगे, इसी से भन्तेगण, हमें सेट्टियों से धन ऋण लेना होगा । ” भद्रिय ने कहा। " सेट्ठिजन ऋण क्यों देंगे ? " स्वर्णसेन ने कहा । “ क्यों नहीं देंगे , क्या गण के साथ उनकी सुख- समृद्धि संयुक्त नहीं है ? क्या वे गण की व्यवस्था ही से अपने वाणिज्य - व्यापार नहीं कर रहे हैं ? क्या श्रेणिक बिम्बसार का
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