था , कि वे अंग को स्वतंत्र राज्य घोषित करें । और उन्होंने भी प्रसेनजित् और मगध सम्राट के बीच व्यवधान रखने ही में कल्याण समझकर हमारा प्रस्ताव मान लिया था और दधिवाहन को अंगपति मानकर चम्पा में उसका अभिषेक कर दिया था । अब मगध - सम्राट ने चम्पा के इस दुर्बल असहाय राजा दधिवाहन को मारकर अंग - राज्य को मगध - साम्राज्य में मिला लिया है । इससे न केवल पूर्व में बंग और कलिंग के लिए भय उत्पन्न हो गया है , प्रत्युत हमारा पूर्वी वाणिज्य ही समाप्त हो गया है । " नागसेन यह कहकर बैठ गए । अब सन्धि - वैग्राहिक जयराज ने खड़े होकर कहा " भन्तेगण , आपने गणपति और परराष्ट्रसचिव के भाषण सुने । मैं गण का ध्यान अपने अष्टकुल के संगठन और उस पर आने वाली विपत्ति की ओर आकर्षित करना चाहता हूं । मगध- साम्राज्य में अब से कुछ ही वर्ष प्रथम केवल अस्सी सहस्र ग्राम थे और उसकी परिधि तेईस कोस थी । परन्तु आज उसका विस्तार आसमुद्र सम्पूर्ण भरतखण्ड पर है। उसके साम्राज्य में दो - चार छिद्र हैं , उनमें हमारे गणराज्य ही सबसे अधिक उसकी आंख में खटक रहे हैं । प्रसेनजित् ने उसे हरा दिया था , पर वास्तव में उसका कारण बन्धुल मल्ल और उसके पुत्रों का पराक्रम था । बूढ़ा कामुक प्रसेनजित् आज आकाश से टूटे तारे की भांति लोप हो गया । इसी से बिम्बसार को इतना साहस हुआ कि हम पर अभियान कर रहा है। अब तक हमारे अष्टकुलों में मिथिला के विदेह, कुण्यपुर के क्षत्रिय , कोल्लाग के उग्र ऐक्ष्वाकु लिच्छवि आदि अपना ठीक संगठन बनाए रहे हैं । पावा और कुशीनारा के मल्लों के नौ गण संघ भी आज हमारे साथ हैं और कासी - कोलों के अष्टदश गणराज्य भी । इस प्रकार कासी कोल - राज्य, वज्जी -गणराज्य - संघ और मल्ल गणराज्य संघों का त्रिपुट हमारा सम्पूर्ण संगठन है । मगध - सम्राट् ने हमारे संयुक्त गणराज्य पर अब अभियान किया है,इसी से हमने आज मल्लों, अष्टकुल - वज्जियों तथा कासी - कोलों के अठारह गणराज्यों की इस सन्निपात भेरी का आवाहन किया है। " ___ इतना कहकर सन्धिवैग्राहिक जयराज कुछ देर चुप रहे , फिर उन्होंने उपस्थित गण - सन्निपात की ओर देखकर कहा " भन्तेगण, आप जानते हैं कि आज भरतखण्ड में षोडश महा जनपद हैं । इन षोडश जनपदों से कासी , कोल , वज्जी, मल्ल इन चारों गणसंघों के छत्तीस राज्यों का हमारा संयुक्त सन्निपात एक ओर है । अब चेतिक के दोनों उपनिवेशों के उपचर - अपचर से हमें सन्धि करने की आवश्यकता है । चेतिक की राजधानी सुत्तिमती को जो मार्ग कासी होकर जाता है , उसमें दस्युओं का भय है और हमें वहां सुरक्षा का सम्पूर्ण प्रबन्ध करके अपना चर भेजना आवश्यक है । ___ “रही कौशाम्बीपति उदयन की बात , वे भी हमारे मित्र हैं । कुरु के कौरव प्रधान राष्ट्रपाल और पांचाल ब्रह्मदत्त हमारे गण के समर्थक हैं । ये दोनों गण भलीभांति सुगठित हैं । निस्सन्देह मथुरा के महाराज अवन्तिवर्मन और अवन्ती के चण्डमहासेन हमारे पक्ष में नहीं हैं । परन्तु चण्डमहासेन कभी भी अपने जामाता उदयन के विरोधी नहीं होंगे। फिर इन दोनों से मगध का विग्रह है। यद्यपि मगध सम्राट ने भी उदयन को अपनी कन्या देकर भारी राजनीति प्रकट की है और कुटिल वर्षकार ने यौगन्धरायण को भरमाकर मैत्री सूत्र में बांधा है, फिर भी अनेक गम्भीर कारण ऐसे हैं कि वत्स के महामात्य यौगन्धरायण के कुशल
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