पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३८५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

113. सन्निपात -भेरी फसल कट चुकी थी और वर्षा आरम्भ होना चाहती थी । वैशाली में युद्ध की चर्चा फैलती जाती थी । मगध- सम्राट बिम्बसार की भीषण तैयारियों की सूचना प्रतिदिन चर ला रहे थे। परिषद् की गणसंस्था ने युद्ध- उद्वाहिका के संयुक्त सन्निपात - भेरी की विशिष्ट बैठक का आवाहन किया था । संथागार में वज्जीगण के अष्टकुल - प्रतिनिधि , नौ मल्ल -संघों के और अठारह कासी -कोलों के गण राज्यों के राजप्रमुख आमन्त्रित थे। सम्पूर्ण उद्वाहिका - सदस्य उपस्थित थे। गणपति ने उद्वाहिका का उद्घा1टन किया । उन्होंने खड़े होकर कहा - “ भन्ते गण सुनें , आज जिस गुरुतर कार्य के लिए वज्जी - मल्लकोल के गणराज्यों का यह संयुक्त सन्निपात हुआ है उसे मैं गण को निवेदन करता हूं । गण को भलीभांति विदित है कि मगध- सम्राट बिम्बसार वज्जी के अष्टकुलों के गणतन्त्र को नष्ट करने पर कटिबद्ध हैं । वज्जीगण के साथ मल्लों के नौ संघराज्यों से कासीकोलों के अठारह गणराज्यों का भाग्य बंधा है । गण को संधिवैग्राहिक आयुष्मान् जयराज बताएंगे कि शत्रु ने किन -किन कूट चालों से हमें युद्ध के लिए विवश किया है । कोसलपति महाराज प्रसेनजित् से परास्त होकर सम्राट् बिम्बसार का उत्साह भंग हो जाएगा , हमने यही आशा की थी परन्तु ऐसा नहीं हुआ । हमें अभी ये सुविधाएं हैं कि पड़ोसी राज्यों के समाचार हमें समय पर ठीक -ठीक मिल जाते हैं । इसी से हमसे मगध की यह विकट समर - सज्जा छिपी नहीं रही है । भन्तेगण, आज वज्जीगण के अष्टकुल पर और मल्ल - कासी - कोल गणराज्यों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं और हम कह सकते हैं कि अब किसी भी क्षण वज्जीसंघ की राजधानी वैशाली पर मगधसेना का आक्रमण हो सकता है। " इतना कहकर गणपति बैठ गए । परराष्ट्रसचिव नागसेन ने अब खड़े होकर कहा ___ “ भन्तेगण सुनें , गणपति ने जो सत्य विभीषिकापूर्ण सूचना दी है, उसकी गम्भीरता एक और घटना से और बढ़ जाती है । भन्तेगण जानते हैं कि कौशाम्बी नरेश शतानीक ने पूर्वकाल में चम्पा पर आक्रमण करके उसे आक्रान्त किया था ; आप यह भी जानते हैं कि चम्पा की तटस्थता एवं मित्रता का वज्जी के साथी गणराज्यों से कैसे गम्भीर स्वार्थ हैं । साथ ही यह बात भी नहीं भुलाई जा सकती कि चम्पा का स्वतन्त्र राज्य मगध की आंखों का पुराना शूल था , क्योंकि वह उसकी पूर्वी सीमा से मिला था और जब तक वह स्वाधीन था , मगध- सम्राट् बंग , कलिंग की ओर आंख उठाकर भी देख नहीं सकता था । अंग -बंग- कलिंग वास्तव में राजनीतिक एकता में पूरे आबद्ध हैं । इधर हमारा लगभग आधा वाणिज्य चम्पा ही के मार्ग से स्वर्णद्वीप और मलयद्वीप - पुञ्ज तक पहुंच जाता है। इससे अंग की राजधानी चम्पा हमारे वाणिज्य ही के लिए केन्द्र नहीं थी , प्रत्युत मगध- सम्राट के लिए भी कण्टक रूप थी । इसी से कौशाम्बीपति उदयन से जब हमारी संधि हुई, तब हमने उन्हें विवश किया