दिव्य शक्तियों का प्रयोक्ता है । इसे क्रुद्ध या असन्तुष्ट न करना नहीं तो यह तुम सब ब्राह्मणों को अपने तेज से जलाकर भस्म कर डालेगा । " उस तथाकथित राजकुमारी षोडशी बाला की ऐसी अतर्कित वाणी सुनकर सब ब्राह्मण आश्चर्यचकित रह गए । बहुत - से भयभीत होकर उस घृणित चाण्डाल मुनि को देखने लगे । बहुत - से अब भी अपशब्द बकते रहे । इसी समय नन्दन साहु बहुत - सी खाद्य - सामग्री गाड़ी में भरे वहां आ उपस्थित हुआ । जब से आर्य वर्षकार का वहां सदाव्रत लगा था - नन्दन साहु सब रसद पहुंचाता था । साहु ने ज्यों ही वहां खड़े निगंठ चाण्डाल मुनि को देखा , वह दौड़कर उसके चरणों में लोट गया । उस महाकलुषित अशुभ चाण्डाल के चरणों में साहु को लोटता हुआ देख ब्राह्मणों को और भी आश्चर्य हुआ । उनके आश्चर्य तथा भीति को बढ़ाता हुआ साहु बोला - आर्यो, यह साक्षात् तेजपुंज तपस्वी हैं । आप जानते नहीं हैं , मन्द कान्तार यक्ष की चौकी पर यह उग्र मुनि तप करते हैं । वह भीषण यक्ष, जिसके भय से वैशाली का कोई जन रात्रि को उस दिशा में नहीं जाता , इस मुनि की नित्य चरण - सेवा करता है। यह मैंने आंखों से देखा है। आपने अच्छा नहीं किया , जो भिक्षाकाल में इस मुनि को असन्तुष्ट कर दिया । आर्यो, मेरा कहा मानो , आप इन महातेजोपुञ्ज तपस्वी के चरणों में गिरकर इनकी शरण जाओ, नहीं तो आपकी जीवन - रक्षा ही कठिन हो जाएगी। " परन्तु साहु की ऐसी भयानक बात सुनकर भी ब्राह्मण जड़वत् खड़े रह गए । इस काणे चाण्डाल के चरण छूने का किसी को साहस नहीं हुआ । साहु ने फिर चाण्डाल मुनि के चरण छुए और कहा - " क्षमा करो, हे महापुरुष , इन ब्राह्मणों को जीवनदान दो । आइए समर्थ भदन्त , मेरे साथ मेरी भिक्षा ग्रहण कर मेरे कुल को कृतार्थ कीजिए। " इतना कहकर नन्दन साहु उस काणे तपस्वी चाण्डाल को बड़े आदरपूर्वक राह मार्ग को अपने उत्तरीय से झाड़ता हुआ अपने साथ ले चला । सब ब्राह्मण तथा पौरगण जड़वत् इस व्यापार को देखते रहे। प्रतापी मगध महामात्य भी निश्चल बैठे देखते रहे ।
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