पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३७४

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ड्योढ़ी के एक दास ने आगे बढ़कर अश्व थाम लिया। प्रहरियों के प्रधान ने आगे बढ़कर कहा - “ भन्ते सेनापति , आप चाहते क्या हैं ? " जिस तरुण को सेनापति कहकर सम्बोधित किया गया था , उसने उस प्रतिष्ठित सम्बोधन से कुछ भी प्रसन्न न होकर एक भारी- सी किन्तु छोटी थैली उसकी ओर फेंक दी और आगे बढ़कर डंका उठा दर्दुर पर चोट की । दूर - दूर तक वह शब्द गूंज उठा । प्रहरी ने आदरपूर्वक सिर झुकाकर द्वार खोल दिया । प्रहरी विदेशी था । वह जितना शरीर से स्थूल था , वैसी ही स्थूल उसकी बद्धि भी थी । उसने डरते - डरते झुककर पूछा - “ सौ ही स्वर्ण हैं भन्ते , कम तो नहीं ? " " कुछ अधिक ही है। “ सौ तेरी स्वामिनी के लिए और शेष तेरे लिए हैं । ” तरुण ने मुस्कराकर कहा । प्रहरी खुश हो गया । उसने हंसकर कहा - " आपका कल्याण हो भद्र, यह मार्ग है , आइए! " भीतर अलिन्द में जाकर उसने महाप्रतिहार पीड़ को पुकारा । प्रतिहार अतिथि को भद्रनन्दिनी के निकट ले गया । भद्रनन्दिनी ने उसे ले जाकर बहुमूल्य आसन पर बैठाया और हंसकर कहा - “ भद्र , कैसा सुख चाहते हैं - पान , नृत्य , गीत , द्यूत या प्रहसन ? " नहीं प्रिये, केवल तुम्हारा एकान्त सहवास , तुम्हारा मृदु- मधुर वार्तालाप । " " तो भन्ते, ऐसा ही हो ! ” उसने दासियों की ओर देखा । दासियां वहां से चली गईं । द्वारों और गवाक्षों पर पर्दे खींच दिए गए। एक दासी एक स्वर्ण- पात्र में गौड़ीय स्फटिक पानपात्र और बहुत - से स्वादिष्ट भूने शल्य मांस -श्रृंगाटक रख गई । भद्रनन्दिनी ने कहा - “ अब और तुम्हारा क्या प्रिय करूं प्रिय ? " " मेरे निकट आकर बैठो प्रिये ! नन्दिनी ने पास बैठकर हंसते -हंसते कहा -किन्तु भद्र! तुम जानते हो मैं नागपत्नी हूं, अंग से अस्पृश्य हूं। " “ सो मैं जानता हूं प्रिये , केवल तुम्हारे वचनामृत का ही आनन्द लाभ चाहता हूं। " नन्दिनी ने मद्यपात्र में सुवासित गौड़ीय उड़ेलते हुए पूछा “किन्तु भद्र, यह मुझे किस महाभाग के सत्कार का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है ? " “ वैशाली के एक नगण्य नागरिक का भद्रे! ” “ वैशाली में ऐसे कितने नगण्य नागरिक हैं प्रिय , जो एक वीरांगना से केवल वाग्विलास करने का शुल्क सौ सुवर्ण दे सकते हैं ? " “ यह तो भद्रे, गणिकाध्यक्ष सम्भवत : बता सके , परन्तु उसके पास भी आगन्तुकों का हिसाब-किताब तो न होगा । ___ “ जाने दो प्रिय , किन्तु , इस प्रियदर्शन नगण्यनागरिक का नाम क्या है ? " “ विदिशा की सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी आज के शुभ मुहूर्त में उसका जो भी नाम निर्धारित करे , वही। " " उस नाम को वैशाली का गणपद स्वीकार कर लेगा ? " __ “न करे , उसकी क्या चिन्ता ! किन्तु विदिशा की सुन्दरी के आवास के भीतर तो उसी नाम का डंका बजेगा । "