पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३७१

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“ सुनकर आश्वस्त हुआ , अष्टकुल का कल्याण हो ! यद्यपि मैं ब्राह्मण हूं , किन्तु भिक्षोपजीवी नहीं । वज्जीगण यदि राजसेवा लेकर अन्न दें तो मैं लूंगा, नहीं तो नहीं। " _ “ यह आर्य का गौरव है, परन्तु आर्य यह भली- भांति जानते हैं कि वज्जी - शासन में मात्र अष्टकुल के प्रतिनिधि ही सक्रिय रह सकते हैं -वर्णधर्मी आर्य नहीं । यह हमारी प्राचीन मर्यादा है । ” विदेश- सचिव नागसेन ने कहा । “ यह मैं नहीं जानता हूं । आयुष्मान् को सशंक और सावधान रहना चाहिए , यह भी ठीक है। परन्तु शासन में सक्रिय होने की मेरी अभिलाषा नहीं है । मैं तो अन्न का मूल्य देना चाहता हूं । " " क्यों आर्य यह आज्ञा करते हैं , जबकि वज्जियों का यह संघ आर्य का सम्मान्य अतिथि के रूप में स्वागत करने को प्रस्तुत है? " ___ “ठीक है, परन्तु आयुष्मान् पूज्य - पूजन की भी एक मर्यादा है। मैं अतिथि तो हूं नहीं, जीविकान्वेषी हूं अर्थी हूं! ” . “ तो आर्य प्रसन्न हों , वज्जीगण संघ को आशीर्वाद प्रदान करते रहें , आर्य की यही यथेष्ट सेवा होगी। ” ___ “ भद्र, मैं राजपुरुष प्रथम हूं और ब्राह्मण पीछे। मैं आशीर्वाद देने का अभ्यासी नहीं . राजचक्र चलाने का अभ्यासी हूं । " जयराज सन्धिविग्रहिक ने गणपति सुनन्द का संकेत पाकर खड़े होकर कहा " तब आर्य यदि वज्जीगण के समक्ष मगध- सम्राट् पर आर्य के प्रति कृतघ्नता अथवा अनाचार का अभियोग उपस्थित करते हैं , तो गण- सन्निपात उस पर विचार करने को प्रस्तुत हैं । " “मगध- सम्राट् वज्जीगण का विषय नहीं है आयुष्मान्, इसलिए वज्जीगण सन्निपात इस सम्बन्ध में विचार नहीं कर सकता । फिर मेरा कोई अभियोग ही नहीं है, मैं तो अन्न का इच्छुक हूं। " ___ “ तब यदि आर्य वजीसंघ में राजनियुक्त हों और वज्जीसंघ यदि मगध पर अभियान करे , तब आर्य कठिनाई में पड़ सकते हैं । ” " कठिनाई कैसी, आयुष्मान्? " “ द्विविधा की , आर्य! ” " परन्तु वज्जीसंघ मगध पर अभियान क्यों करेगा ? उसकी तो साम्राज्य-लिप्सा नहीं है। ” “नहीं वज्जीसंघ न अभियान करे, मगध ही वजी पर अभियान करे , तब आर्य क्या करेंगे ? " “ जो उचित होगा, वही! “ और औचित्य का मापदण्ड क्या होगा -विवेक , न्याय या राजनीति ? " “ राजनीति आयुष्मान् ! ” " किसकी राजनीति, आर्य ? " जयराज ने हंसकर कहा। कुटिल ब्राह्मण क्रोध से थर - थर कांपने लगा, उसने कहा "मेरी ही राजनीति , आयुष्मान् ! ”