पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३६९

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सामन्त था । उसमें सुप्त आखेट - वासना जाग्रत हई और अश्वों को पकड़ने का सम्पर्ण आयोजन विचारकर वह आगामी पूर्णिमा तक समुद्र में ज्वार आने की प्रतीक्षा में उसी द्वीप में ठहर गया । समुद्र में पूर्ण चन्द्रोदय होने पर फिर ज्वार आया । फिर वैसे ही अनगिनत वाडव अश्व समुद्र की तरंगों पर तैरते हुए द्वीप में घुस आए। कृतपुण्य ने एक ऊंचे स्थान पर बैठकर वीणा बजानी प्रारम्भ की । वीणा की मधुर झंकृति से विमोहित हो वे अश्व उसी शब्द की ओर आकर्षित हो अपने लम्बे - लम्बे कान खड़े कर खड़े- के - खड़े रह गए । तब कृतपुण्य के संकेत से उसके दासों ने उन्हें विविध सुगन्ध - द्रव्य सुंघाए , विविध स्वादिष्ट मधुर खाद्य - पेय खाने को दिए। इस प्रकार वीणा की ध्वनि से विमोहित तथा विविध गन्ध - खाद्य - पेय से लुब्ध बने वे अश्व उन मनुष्यों से परिचित की भांति बारम्बार मुंह उठाकर खाद्य - पेय मांगने तथा खड़े- खड़े कनौतियां काटने लगे । समुद्र के पीछे लौटने का उन्हें भान ही न रहा। ज्वार उतर गया और कृतपुण्य के दासों ने उन्हें युक्ति से दृढ़ बन्धन से बांध लिया तथा जलयान पर चढ़ा लिया । इस अद्भुत और अतर्कित रीति से देव - मनुष्य - दुर्लभ वाडव अश्व और अमोघ रत्ननिधि इस अक्षेय द्वीप से लेकर कृतपुण्य ने अनुकूल वायु देख , जल - ईंधन और फल - मूल आदि भरकर प्रस्थान किया तथा देश - देश में होता हुआ वह भृगुकच्छ पहुंचा। भृगुकच्छ में उसने बहुत - सा माल क्रय किया , तथा स्थल - मार्ग से सार्थवाह ले चला । इस समय उसका सार्थवाह एक चतुरंगिणी सेना की भांति था । भृगु कच्छ में ठहरकर उसने चतुर, गुणी और शास्त्रज्ञ अश्वपालों एवं अश्वमर्दकों को नियुक्त किया जिन्होंने अश्वों के मुंह - कान बांध , वल्गु चढ़ा , तंग खींच, चाबुक और वेत्र की मार - मारकर विविध भांति आज्ञा पालन और चाल चलने की शिक्षा दी । इस प्रकार शिक्षण प्राप्त कर और बहुमूल्य रत्नाभरणों से सुसज्जित होकर जब ये अश्व लोगों की दृष्टि में पड़े, तब सब उन्हें देखते ही रह गए । इस प्रकार भाग्य की नियति से विक्षिप्तावस्था में वैशाली को त्यागने के सात वर्ष पश्चात् हर्षदेव ने महासेट्ठि सार्थवाह कृतपुण्य के रूप में वहां प्रवेश किया और उत्तरायण में सहस्र स्वर्णशिखरों वाला श्वेतमर्मर का हर्म्य बनवा , दास- दासियों, कम्मकरों , लेखकों , कर्णिकों, दण्डधरों, द्वारपालों , रक्खकों से सेवित हो देखते - ही - देखते सर्वपूजित हो वह वहां निवास करने लगा और अपनी दिनचर्या से ऐश्वर्य - चमत्कार दिखा-दिखाकर नगर , नागर और जनपद को चमत्कृत करने लगा , तो कुछ दिन तक तो लोग सब - कुछ भूलकर सेट्टि कृतपुण्य की ही चर्चा वैशाली में घर - घर करने लगे ।