पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३६४

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104. दस्यु बलभद्र वैशाली में अकस्मात् ही एक अतर्कित भीति की भावना फैल गई। नगर के बाह्य और अन्तरायण सभी जगह बलभद्र की दु: साहसिक डकैतियों की अनेक आतंकपूर्ण साहसिक कहानियां जगह- जगह सुनी जाने लगीं । जितने मुंह उतनी ही बातें थीं । सभी परिजन और राजवर्गी उत्तेजित हो उठे । परिषद् का वातावरण भी क्षुब्ध हो गया था । पर दस्यु बलभद्र और उसके दुर्धर्ष दस्युओं को कोई पकड़ नहीं सका । अट्टी -रक्खकों को बारम्बार सावधान करने पर भी इधर - उधर राह चलते धनपति लुटने लगे। ग्रामों से अशान्त सूचनाएं आने लगीं। एक दिन परिषद् का राजस्व नगर में आते हुए मार्ग में लुट गया और उसके कुछ दिन बाद ही दिन - दहाड़े अन्तरायण भी लूट लिया गया । इस घटना से वैशाली में बहुत आतंक छा गया । लोग नगर छोड़कर भागने लगे। बहुतों ने अपने रत्न पृथ्वी में गाड़ दिए । परन्तु नगर के सामन्त पुत्र इन सब झंझटों से उदासीन थे। वे दिन - भर अलस भाव से सन्ध्या होने की प्रतीक्षा में आंखें बन्द किए पड़े रहते , सन्ध्या होने पर सज - धजकर अलंकृत हो स्वर्ण रत्न कुर्वक - कोष में भरकर और उत्सुक - आकुल भाव से सप्तभूमि प्रासाद के स्वर्ग- लोक में जाकर सुरा - सुन्दरी - संगीत के सुख- भोग और द्यूत -विनोद में आधी रात तक डूबते - उतराते। फिर आधी रात व्यतीत हो जाने पर सूना कुर्वककोष , सूने हृदय से उनींदी आंखों को खोलते -मींचते मद्य के मद में लड़खड़ाते अपने - अपने भृत्यों के कंधों का सहारा लिए , अपने - अपने वाहनों में अर्ध मृतकों के समान पड़कर अपने घर जाते और मृतक - से अत्यन्त गर्हित भाव से बेसुध होकर दोपहर तक पड़े रहते थे । विश्व में कहां क्या हो रहा है , यह जैसे वे भूल गए थे। उन्हें एक वस्तु याद रह गई थी , अम्बपाली की मन्द मुस्कान , उसका स्वर्गसदन सप्तभूमि प्रासाद, सुगन्धित मदिरा और अनगिनत अछूते यौवन ।