पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३६२

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करने में समर्थ हूं। " “ तो आर्य, मैं लिच्छवि हूं; और वैशाली से प्रताड़ित हूं। मैंने वैशाली को उच्छेद करने का प्रण किया है। " ब्राह्मण चमत्कृत हुआ । उसने उत्सुकता को दबाकर कहा -“ तू लिच्छवि होकर वैशाली पर ऐसा क्रुद्ध क्यों है ? " “ आर्य, वैशाली के गणों ने मेरी वाग्दत्ता अम्बपाली को नगरवधू बनाकर मेरे नागरिक अधिकारों का हरण किया है । " . “ तो आयुष्मन्, तू कृतसंकल्प होकर कैसे नियुक्त हुआ ? और अब फिर तू उसी मोह में है। " " तो आर्य, मैं क्या करूं ? " " तू वैशाली का उच्छेद कर । " “किस प्रकार आर्य ? " " मेरा अनुगत होकर। " " तो मैं आपका अनुगत हूं। " " तो भद्र, यह ले। " ब्राह्मण ने वस्त्र से निकालकर वे मुट्ठी- भर तेजस्वी रत्न उसके हाथ पर रख दिए। रत्नों की ज्योति देख बटारू की आंखों में चकाचौंध लग गई। उसने कहा - “ ये रत्न , मैं क्या करूं ? " “ इन्हें ले , और यहां से तीन योजन पर पावापुरी हैं वहां जा । वहां मेरा सहपाठी मित्र इन्द्रभूति रहता है, उसे यह मुद्रिका दिखाना, वह तेरी सहायता करेगा। वहां उसकी सहायता से तू रत्नों को बेचकर बहुत - सी विक्रेय सामग्री मोल के दास -दासी - कम्मकर संग्रह कर ठाठ - बाट से एक सार्थवाह के रूप में चम्पा जा और अपने श्वसुर गृहपति का अतिथि कृतपुण्य होकर रह । परन्तु वहां तू मध्यमा की प्रतीक्षा में समय नष्ट न करना ! सब सामग्री बेच, श्वसुर से भी जितना धन उधार लेना सम्भव हो , ले भारी सार्थवाह के रूप में बिक्री करता और माल मोल लेता हुआ बंग, कलिंग, अवन्ती , भोज , आन्ध्र, माहिष्मती , भृगुकच्छ और प्रतिष्ठान की यात्रा कर। यह लेख ले और जहां - जहां जिन -जिनके नाम इसमें अंकित हैं , उन्हें यह मुद्रिका दिखा , उनके सहयोग से वैशाली के अभियान में अपना पूर्व परिचय गुप्त रख ‘ कृतपुण्य सार्थवाह होकर प्रवेश कर । आदेश मैं तुझे वहीं दूंगा । " । ब्राह्मण की बात सुन और लक्षावधि स्वर्ण- मूल्य के रत्न उसके द्वारा प्राप्त कर उसने समझा कि यह ब्राह्मण अवश्य कोई छद्मवेशी बहुत बड़ा आदमी है। परन्तु वह उससे परिचय पूछने का साहस नहीं कर सका। उसने विनयावनत होकर कहा - " जैसी आज्ञा , परन्तु आपके दर्शन कैसे होंगे? " " भद्र , वैशाली के अन्तरायण में नन्दन साहू की हट्ट है, वहीं तू बटारू ब्राह्मण को पूछना । परन्तु इसकी तुझे आवश्यकता नहीं होगी । यहां प्रतिष्ठा - योग्य स्थान लेकर अन्तरायण में निगम - सम्मत होकर हट्ट खोल देना । तेरा वैशाली में आगमन मुझ पर अप्रकट न रहेगा। " यह कहकर ब्राह्मण ने उसे एक लिखित भूर्जपत्र दिया और कहा - “ जा पुत्र अपना