पहर दिन-चढ़े, उस मनोरम वसन्त के प्रभात में नीलपद्म प्रासाद से देवी अम्बपाली की शोभायात्रा चली। उसका विमान विविध वर्ण के फूलों से बनाया गया था। उस पर देवी अम्बपाली केवल अन्तर्वास और उत्तरीय पहने लज्जावनत-मुख बैठी निराभरण होने के कारण तारकहीन उषा की सुषमा धारण कर रही थी। वह फूलों के ढेर में एक सजीव पुष्पगुच्छ-सी प्रतीत हो रही थी। लज्जा और संकोच से जैसे उसकी आंखें झुकी जा रही थीं। उसका मुंह रह-रहकर लाल हो रहा था। उसकी सुडौल शुभ्र ग्रीवा, उज्ज्वल-उन्नत वक्ष और लहराते हुए चिक्कण कुन्तल, उसमें गुंथे हुए ताज़े विविध रंगों के कुसुम, इन सबकी शोभा अपार थी।
शोभा-यात्रा में आगे वाद्य बज रहे थे। उसके पीछे हाथियों पर ध्वज-पताका और निशान थे। उसके पीछे उज्ज्वल परिधान पहने दासियां स्नान और पूजन की सामग्री लिए चल रही थीं। इसके पीछे अम्बपाली का कुसुम-विमान था। उसे घेरकर वैशाली के सामन्त पुत्र और सेट्ठिपुत्र अम्बपाली पर पुष्प-गन्ध की वर्षा करते चल रहे थे। नगर जन अपने अपने मकानों से पुष्पगन्ध फेंक रहे थे। चारों ओर रंगीन पताकाएं-ही-पताकाएं चमक रही थीं। सबसे पीछे नागरिक जन चल रहे थे।
पुष्करिणी के अन्तर-द्वार के इधर ही सब लोग रोक दिए गए। केवल सेट्ठिपुत्र और सामन्तपुत्र ही भीतर कमलवन में आ सके। इसके बाद घाट पर उन्हें भी रोक दिया गया केवल गण-सदस्य ही वहां जा पाए। शोभा-यात्रा रुक गई। लोग जहां-तहां वृक्षों की छाया में बैठकर गप्पें हांकने लगे। पुष्करिणी के घाट पर खड्गधारी भट पंक्तियां बांधकर खड़े थे। उन सबकी पीठ पुष्करिणी की ओर थी। गणपति ने हाथ का सहारा देकर अम्बपाली को विमान से उतारा और धीरे-धीरे उसे पुष्करिणी की सीढ़ियों पर से उतारकर जल के निकट तक ले गए।
फिर उन्होंने पुष्करिणी का पवित्र जल हाथ में लेकर अम्बपाली की अंजलि में दिया और कहा––"कहो देवी अम्बपाली, मैं वज्जीसंघ के अधीन हूं।"
अम्बपाली ने ऐसा ही कहा। तब गणपति उसे जल में और एक सीढ़ी उतारकर घुटनों तक पानी में खड़े होकर बोले––"कहो देवी अम्बपाली, मैं वैशाली के जनपद की हूं।"
अम्बपाली ने ऐसा ही कहा।
गणपति ने अब कमर तक जल में घुसकर कहा––"कहो देवी अम्बपाली, क्या तुम लिच्छवियों की सात मर्यादाओं का पालन करोगी?"
अम्बपाली ने मृदु कण्ठ से स्वीकृति दी।
तब गणपति ने उच्च स्वर से पुकारकर कहा, "भन्ते, आयुष्मान् सब कोई सुनें! मैं अष्टकुल के वज्जीतन्त्र की ओर से घोषित करता हूं कि देवी अम्बपाली वैशाली की जनपदकल्याणी हैं। वे आज वैशाली की नगरवधू घोषित की गईं।"
उन्होंने सुगन्धित तेल से अम्बपाली के सिर पर अभिषेक किया और फिर उसका मस्तक चूमा। इसके बाद वे जल से बाहर निकल आए। गणसदस्यों ने गन्ध-पुष्प अम्बपाली पर फेंके। सामन्तपुत्र और सेट्ठिपुत्र हर्षनाद करने लगे। अम्बपाली ने तीन डुबकियां लगाईं। महीन अन्तरवासक उसके स्वर्णगात्र से चिपक गया, उसका अंगसौष्ठव स्पष्ट दीख पड़ने
लगा। केशराशि से मोतियों की बूंद के समान जलबिन्दु टपकने लगे। पुष्करिणी से