पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३४१

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? “ बजते हुए देखा है ? असम्भव ! " " देखा है मित्र ! ” अम्बपाली ने अति गम्भीर स्वर में कहा । “ कहां ? " " देवी अम्बपाली के आवास में ? " " देवी अम्बपाली के आवास में ? किसने इसे बजाया था मित्र, तुम स्वप्न देख रहे हो " कदाचित् स्वप्न ही हो , नहीं तो यह वीणा इस एकान्त कुटी में ? आश्चर्य! अति आश्चर्य ! " " परन्तु इसे तुमने बजते देखा था ? किसने बजाया था मित्र ? " पृथ्वी पर एक ही व्यक्ति तो इसे बजा सकता है। " " महाराज उदयन ? ” " हां वही । " “ और वे देवी अम्बपाली के आवास में आए थे ? " “ गत वसन्त में महाराज ने वीणा बजाई थी और देवी ने अवश नृत्य किया था । " “ और तुमने वह नृत्य देखा था मित्र ? देवी अम्बपाली के नृत्य को देखने की सामर्थ्य किसमें है ? उनकी दासियां जो नृत्य करती हैं वही देव - दानव और नरलोक के लिए दुर्लभ है । " “ परन्तु मैंने देखा था , इस अमोघ वीणा के प्रभाव से अवश हो देवी ने नृत्य किया था । " तरुण कुछ देर एकटक देवी अम्बपाली के मुंह की ओर देखता रहा , फिर बोला " तुम सत्य कहते हो मित्र , पर क्या देवी अम्बपाली से तुम्हारा परिचय है ? " “यथेष्ट है। ” “ यथेष्ट ? तब तुम क्या मुझे उपकृत करोगे ? " “ आज के उपकार के बदले में ? " अम्बपाली ने हंसकर कहा । " नहीं - नहीं मित्र, परन्तु मेरी एक अभिलाषा है। " " क्या उसे मैं जान सकता हूं ? " । “गोपनीय क्या है मित्र , मैं चाहता हूं, एक बार देवी अम्बपाली मेरे सम्मुख वही नृत्य करें । ” " तुम्हारे सम्मुख? तुम्हारा साहस तो प्रशंसनीय है मित्र ! " अम्बपाली वेग से हंस पड़ीं । तरुण ने क्रुद्ध होकर कहा - “ इतना क्यों हंसते हो मित्र ? । परन्तु अम्बपाली हंसती ही रहीं; फिर उन्होंने हंसते -हंसते कहा - " खूब कहा तुमने मित्र , देवी अम्बपाली तुम्हारे सम्मुख नृत्य करेंगी ! क्या तुम जानते हो , देवी का नृत्य देखने के लिए देव - गन्धर्व भी समर्थ नहीं हैं ! " तरुण खीझ उठा, उसने कहा - "जितना तुम हंस सकते हो हंसो मित्र, पर मैं कहे देता हूं, देवी अम्बपाली को मेरे सम्मुख नृत्य करना पड़ेगा । " “ और तुम कदाचित् तब यह वीणा उसी प्रकार बजाओगे, जैसे महाराज उदयन ने