वैशाली की मंगलपुष्करिणी का अभिषेक वैशाली जनपद का सबसे बड़ा सम्मान था। इस पुष्करिणी में स्नान करने का जीवन में एक बार सिर्फ उसी लिच्छवि को अधिकार मिलता था, जो गणसंस्था का सदस्य निर्वाचित किया जाता था। उस समय बड़ा उत्सव समारोह होता था और उस दिन गण नक्षत्र मनाया जाता था। यह पुष्करिणी उस समय बनाई गई थी जब वैशाली प्रथम बार बसाई गई थी। उसमें लिच्छवियों के उन पूर्वजों के शरीर की पूत गन्ध होने की कल्पना की गई थी, जिन्हें आर्यों ने व्रात्य करके बहिष्कृत कर दिया था और जिन्होंने अपने भुजबल से अष्टकुल की स्थापना की थी। इस समय लिच्छवियों के अष्टकुल के 999 सदस्य ही ऐसे थे, जिन्हें इस पुष्करिणी में स्नान करने की प्रतिष्ठा प्राप्त हो चुकी थी। अन्य लिच्छवि भी इसमें स्नान नहीं कर सकते थे, औरों की तो बात ही क्या! बहुत बार आर्य सम्राटों और उनकी राजमहिषियों ने इस पुष्करिणी में स्नान करने के लिए वैशाली पर चढ़ाई की, परन्तु हर बार उन्हें लिच्छवि तरुणों के बाणों से विद्ध होकर भागना पड़ा। इस पुष्करिणी पर सदैव नंगी तलवारों का पहरा रहता था और उस पर तांबे का एक जाल बिछा हुआ था। कोई पक्षी भी उसमें चोंच नहीं डुबो सकता था। यदि कोई चोरी-छिपे इस पुष्करिणी में स्नान करने की चेष्टा करता तो उसे निश्चय ही प्राणदण्ड मिलता था।
यह पुष्करिणी छोटी-सी किन्तु अति स्वच्छ और मनोरम थी। इसके चारों ओर श्वेत संगमरमर के घाट और सीढ़ियां बनी थीं। स्थान-स्थान पर छत्र और अलिन्द बने हुए थे, जिन पर खुदाई और पच्चीकारी का अति सुन्दर काम किया हुआ था। पुष्करिणी का जल इतना निर्मल था कि उसके तल की प्रत्येक वस्तु स्पष्ट दीख पड़ती थी। उसमें अनेक रंगों के बड़े-बड़े कमल खिले थे। समय-समय पर उसका जल बदलकर तल साफ कर दिया जाता था। पुष्करिणी में सन्ध्या-समय बहुत-सी रंग-बिरंगी मछलियां क्रीड़ा किया करती थीं। पुष्करिणी के चारों ओर जो कमल-वन था उसकी शोभा अनोखी मोहिनी शक्ति रखती थी।
अम्बपाली लिच्छवि थी और वैशाली की जनपदकल्याणी का पद उसे मिला था। उसे विशेषाधिकार के तौर पर वैशाली के जनपद ने यह सम्मान दिया था। तीन दिन से इस अभिषेक महोत्सव की धूम वैशाली में मची थी। उस दिन अम्बपाली शोभायात्रा बनाकर पहली बार सार्वजनिक रूप में वैशाली के नागरिकों के सामने अनवगुण्ठनवती होकर निकलनेवाली थी। उसे देखने को वैशाली का जनपद अधीर हो गया था। नागरिकों ने विविध रंग की पताकाओं से अपने घर, वीथी, हाट और राजमार्ग सजाए थे। मंगलपुष्करिणी पर फूलों का अनोखा शृंगार किया गया था। कदाचित् उस दिन वैशाली जनपद की सम्पूर्ण कुसुमराशि वहीं आ जुटी थी। तीन दिन से गणनक्षत्र घोषित किया गया था और सब कोई आनन्द-उत्सव मना रहे थे ।