पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३३९

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शिला पर क्षण - भर बैठो मित्र, मैं प्रकाश की व्यवस्था कर दूं। " इतना कहकर और बिना ही उत्तर की प्रतीक्षा किए वह कुटी में घुस गया । पत्थर घिसकर उसने आग जलाई । फिर उसने बाहर आकर कहा - “ उस मंजूषा में आवश्यक वस्त्र हैं और उस घड़े में जल है, सामने के ताक पर कुछ सूखा हरिण का मांस और फल रखे हैं , अपनी आवश्यकतानुसार ले लो । संकोच न करना । मैं थोड़ा ईंधन लेकर अभी आता हूं। " इतना कहकर कुटी द्वार से एक भारी कुल्हाड़ी उठा कंधे पर रखकर लम्बे - लम्बे डग भरता हुआ वह अन्धकार में विलीन हो गया ।