" तो आप इस नगण्य प्यार को स्वीकार करती हैं ? " अम्बपाली ने वक्र मुस्कान करके कहा “ इसके लिए तो मैं बाध्य हूं भन्ते युवराज ! वैशाली के प्रत्येक व्यक्ति को मुझे अपना प्यार अर्पण करने का अधिकार है,... वैशाली के ही क्यों जनपद के प्रत्येक व्यक्ति को । " " परन्तु मेरा प्यार औरों ... जैसा नहीं है देवी । " " तो उसमें कुछ विशेषता है ? " “ वह पवित्र है, वह हृदय के गम्भीर प्रदेश की निधि है, देवी अम्बपाली , जिस दिन मैं समझंगा कि आपने मेरे प्यार को स्वीकार किया, उस दिन मैं अपने जीवन को धन्य मानूंगा। " “ वाह, इसमें दुविधा की बात ही क्या है ? तुम आज ही अपने जीवन को धन्य मानो युवराज , परन्तु देखो कोरे प्यार से काम न चलेगा प्रिय , प्यास से मेरा कण्ठ सूख रहा है , मुझे शीतल जल भी चाहिए । " । “वाह, तब तो हम उपयुक्त स्थान पर आ पहुंचेहैं । वह सामने पुष्करिणी है। घड़ी भर वहां विश्राम किया जाए, शीतल जल से प्यास बुझाई जाए और शीतल छाया में शरीर को ठण्डा किया जाए। " ___ “ और पेट की आंतों के लिए ? " " उसकी भी व्यवस्था है, यह झोले में स्वादिष्ट मेवा और भुना हुआ शूल्य मांस है , जो अभी भी गर्म है । वास्तव में वह यवनी दासी बड़ी ही चतुरा है, शूल्य बनाने में तो एक ही है। ” “ कहीं तुम उसे प्यार तो नहीं करते युवराज ? " " नहीं - नहीं , देवी, जो पुष्प देवता पर चढ़ाने योग्य है वह क्या यों ही ....। “ यही तो मैं सोचती हूं ; परन्तु यह पुष्करिणी- तट तो आ गया । " युवराज तत्क्षण अश्व से कूद पड़े और हाथ का सहारा देकर उन्होंने अम्बपाली को अश्व से उतारा । एक बड़े वृक्ष की सघन छाया में गोनक बिछा दिया गया और अम्बपाली उस पर लेट गईं । फिर उन्होंने कहा - " हां , अब देखू तुम्हारी उस यवनी दासी का हस्तकौशल । " स्वर्णसेन ने पिटक से निकालकर शूकर के भुने हुए मांस - खण्ड अम्बपाली के सामने रख दिए , अभी वे कुछ गर्म थे। अम्बपाली ने हंसते -हंसते उन्हें खाते हुए कहा - “ युवराज , तुम्हारी उस यवनी दासी का कल्याण हो , तुम भी तनिक चखकर देखो , बहुत अच्छे बने हैं । मुझे सन्देह है, कहीं इसमें प्रेम का पुट तो नहीं है ! ” । युवराज ने हंसकर कहा - " क्या कोई ईर्ष्या होती है देवी ? " “ क्या दासी के प्रेम से ? नहीं भाई, मैं इस भीषण प्रेम से घबराती हूं। क्या मैं तुम्हें बधाई दूं युवराज ? " " ओह देवी, आप बड़ी निष्ठुर हैं ! " " परन्तु यह यवनी दासी कदाचित् नवनीत - कोमलांगी है ? " “भला देवी की दासी से तुलना क्या ? " " तुलना की एक ही कही युवराज, तुलना न होती तो यह अधम गणिका उसके प्रेम
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