पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३३१

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93. आखेट दिन का जब तीसरा दण्ड व्यतीत हुआ और सूर्य की तीखी लाल किरणें तिरछी होकर पीली पड़ीं और सामन्त युवक जब मैत्रेय छककर पी चुके , तब अम्बपाली से आखेट का प्रस्ताव किया गया । अम्बपाली प्रस्तुत हुईं । यह भी निश्चित हुआ कि देवी अम्बपाली पुरुष- वेश धारणकर अश्व पर सवार हो , गहन वन में प्रवेश करेंगी। अम्बपाली ने हंसते हंसते पुरुष - वेश धारण किया । सिर पर कौशेय धवल उष्णीष जिस पर हीरे का किरीट, अंग पर कसा हुआ कंचुक, कमर में कामदार कमरबन्द । इस वेश में अम्बपाली एक सजीले किशोर की शोभा - खान बन गईं । जब दासी ने आरसी में उन्हें उनका वह भव्य रूप दिखलाया तो वह हंसते-हंसते गद्दे पर लोट - पोट हो गईं । बहुत - से सामन्त - पुत्र और सेट्ठि पुत्र उन्हें घेरकर खड़े- खड़े उनका यह रूप निहारने लगे। युवराज स्वर्णसेन ने अपने चपल अश्व का हठपूर्वक निवारण किया और अम्बपाली के निकट आकर अभिनय के ढंग पर कहा ___ " क्या मैं श्रीमान् से अनुरोध कर सकता हूं कि वे मेरे साथ मृगया को चलकर मेरी प्रतिष्ठा बढ़ाएं ? ” अम्बपाली ने मोहक स्मित करके कहा “ अवश्य, यदि प्रियदर्शी युवराज मेरा अश्व और धनुष मंगा देने का अनुग्रह करें। " “सेवक अपना यह अश्व और धनुष श्रीमान् को समर्पित करता है । ” इतना कहकर युवराज अश्व से कूद पड़े और घुटने टेककर देवी अम्बपाली के सम्मुख बैठ अपना धनुष उन्हें निवेदन करने लगे । ___ अम्बपाली ने बनावटी पौरुष का अभिनय करके आडम्बर - सहित धनुष लेकर अपने कंधे पर टांग लिया और तीरों से भरा हुआ तूणीर कमर से बांध वृद्ध दण्डधर के हाथ से बर्छा लेकर कहा - “मैं प्रस्तुत हूं भन्ते। " “ परन्तु क्या भन्ते युवराज अश्वारूढ़ होने में मेरी सहायता नहीं करेंगे ! " “ क्यों नहीं भन्ते , यह तो मेरा परम सौभाग्य होगा । अश्वारूढ़ होने, संचालन करने और उतरने में मेरी विनम्र सेवाएं सदैव उपस्थित हैं । " स्वर्णसेन युवराज ने एक लम्बा - चौड़ा अभिवादन निवेदन किया और कहा " धन्य वीरवर, आपका साहस ! यह अश्व प्रस्तुत है। " इतना कहकर उन्होंने आगे बढ़कर अम्बपाली का कोमल हाथ पकड़ लिया । अम्बपाली खिल -खिलाकर हंस पड़ीं , स्वर्णसेन भी हंस पड़े । स्वर्णसेन ने अनायास ही अम्बपाली को अश्व पर सवार करा दिया और एक दूसरे अश्व पर स्वयं सवार हो , विजन गहन वन की ओर द्रुत गति से प्रस्थान किया । वृद्ध दण्डधर ने साथ चलने का उपक्रम किया तो अम्बपाली ने हंसकर उसे निवारण करते हुए कहा - “ तुम यहीं मदलेखा के साथ रहो ,