पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३३०

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नहीं दिया जाता था । सूर्य तपने लगा । मध्याह्न हो गया । तब सब कोई मधुवन में पहुंचे। एक विशाल सघन आम्रकुञ्ज में अम्बपाली का डेरा पड़ा । उनका मृदु गात्र इतनी देर की यात्रा से थक गया था । ललाट पर स्वेदबिन्दु हीरे की कनी के समान चमक रहे थे। आम्रकुञ्ज के मध्य में एक सघन वृक्ष के नीचे दुग्ध -फेन- सम श्वेत कोमल गद्दी के ऊपर रत्न - जटित दण्डों पर स्वर्णिम वितान तना था । अम्बपाली वहां आसन्दि - सोपधान पर अलस -भाव से उठंग गईं । उन्होंने अर्धनिमीलित नेत्रों से मदलेखा की ओर देखते हुए कहा - " हला , एक पात्र माध्वीक दे। ” । मदलेखा ने स्वर्ण के सुराभाण्ड से लाल - लाल सुवासित मदिरा पन्ने के हरे - हरे पात्र में उड़ेल कर दी । उसे एक सांस में पीकर अम्बपाली उस कोमल तल्प - शय्या पर पौढ़ गईं । ___ अपनी - अपनी सुविधा के अनुसार सभी लोग अपने - अपने विश्राम की व्यवस्था कर रहे थे। वृक्षों की छाया में , कुओं की निगूढ़ ओट में , जहां जिसे रुचा, उसने अपना आसन जमाया । कोई सेट्ठिपुत्र कोमल उपाधान पर लेटकर अपने सुकुमार शरीर की थकान उतारने लगा , कोई बांसुरी ले तान छेड़ बैठा, किसी ने गौड़ीय, माध्वीक और दाक्खा रस का आस्वादन करना प्रारम्भ किया । किसी ने कोई एक मधुर तान ली । कोई वानर की भांति वृक्ष पर चढ़ बैठा । बहुत - से साहसी सामन्तपुत्र दर्प से अपने - अपने अश्वों पर सवार हो अपने - अपने भाले और धनुष ले मृगया को निकल पड़े और आखेट कर - करके मधुपर्व की रानी के सम्मुख ढेर करने लगे । देखते - देखते आखेट में मारे हुए पशुओं और पक्षियों का समूह पर्वत के समान अम्बपाली के सम्मुख आ लगा । सावर, हरिण , शश , शूकर , वराह, लाव , तित्तिर, ताम्रचूड़ , माहिष और न जाने क्या - क्या जलचर , नभचर , थलचर, जीव प्राण त्याग उस रात को मधुपर्व के रात्रिभोज में अग्नि पर पाक होने के लिए मधुपर्व की रानी अम्बपाली के सम्मुख ढेर- के - ढेर इकट्ठे होने लगे । कोमल उपधानों का सहारा लिए अम्बपाली अपनी दासियों के साथ हंस -हंसकर इन उत्साही युवकों के आखेट की प्रशंसा कर रही थीं और उससे वे अपने को कृतार्थ मानकर और भी द्विगुण उत्साह से आखेट पर अपने अश्व दौड़ा रहे थे ।