सीढ़ियों पर चढ़ाकर अर्ध-निमीलित नेत्रों से देवी अम्बपाली के सम्मुख अभिवादन करके निवेदन किया - “ देवी की जय हो ,रथ प्रस्तुत है एवं सभी नागरिक शोभा -यात्रा को उतावले हो रहे हैं , एक दण्ड दिन भी चढ़ गया है । " अम्बपाली ने कानों तक ओठों को मुस्कराकर एक बार प्रांगण में बिखरे वैशाली के महाप्राणों को देखा और फिर सप्तभूमि प्रासाद की गगनचुम्बी अट्टालिका की ओर । फिर उनकी आंखें सम्मुख विस्तृत नीलपद्म सरोवर की अमल जलराशि पर फैल गईं। उन्होंने गर्व से अपनी हंस की - सी गर्दन उठाकर कहा - “ लल्ल , मुझे रथ का मार्ग दिखा ! " __ “ इधर से देवी ! ” लल्ल ने अति विनयावनत होकर कहा और अम्बपाली लाल कुन्तक के जूतों से सुसज्जित अपने हिमतुषार धवल - मृदुल पादपद्मों से स्फटिक की उन स्वच्छ सीढ़ियों को शत -सहस्र - गुण प्रतिबिम्बित करती हुईं , स्वर्ग से उतरती हुई सजीव सूर्य रश्मि - सी प्रतीत हुईं । युवकों ने अनायास ही उन्हें घेर लिया । उनके हाथों में माधवी और यथिका की मंजरी और उरच्छद थे। वे उन्होंने देवी अम्बपाली पर फेंकना आरम्भ किया । उनमें से कुछ अम्बपाली के अलभ्य गात्र को छूकर उनके चरणों में गिर गईं, कुछ बीच ही में गिरकर अनगिनत भीड़ के पैरों के नीचे कुचल गईं। । ___ ज्योंही अम्बपाली अपने पुष्प - सज्जित रथ पर सवार हुईं , वेग से मृदंग , मुरज और दुन्दुभी बज उठे । दो तरुणियां उनके चरणों में अंगराग लिए आ बैठीं । दो उनके पीछे मोरछल ले खड़ी हो गईं। कुछ काम्बोजी अश्वों पर सवार हो रथ के आगे-पीछे चलने लगीं । युवक सामन्तपुत्रों एवं सेट्टिपुत्रों ने रथ को घेर लिया । बहुतों ने अपने - अपने वाहन त्याग दिए और रथ का धुरा पकड़कर साथ- साथ चलने लगे । बहुतों ने घोड़ों की रश्मियां थाम लीं । बहुत अपने - अपने वाहनों पर चढ़, अपने भाले और शस्त्र चमकाते आगे-पीछे दौड़ - धूप करने लगे । सड़कें कोलाहल से परिपूर्ण थीं । मार्ग के दोनों ओर के गवाक्षों में कुलवधएं बैठी हईं जनपद- कल्याणी अम्बपाली की मधुयात्रा निरख रही थीं । पौरजनों ने मार्ग में अपने - अपने घर और पण्य सजाए थे। सेट्ठियों और निगम की ओर से स्थान - स्थान पर तोरण बनाए गए थे, जो बहुमूल्य कौशेय वस्त्रों एवं विविध रंगबिरंगे फूलों से सुसज्जित हो रहे थे। उन पर बन्दनवार , मधुघट और पताकाओं की अजब छटा थी । प्रत्येक की सजधज निराली थी । अम्बपाली पर चारों ओर से फूलों की वर्षा हो रही थी । वह फूलों में ढकी जा रही थी । अट्टालिकाओं और चित्रशालाओं से सेट्ठि लोग फूलों के गुच्छ उन पर फेंक रहे थे और वह हंस -हंसकर उन्हें हाथ में उठा हृदय से लगा नागरिकों के प्रति अपने प्रेम का परिचय दे रही थीं । लोग हर्ष से उन्मत्त होकर जनपदकल्याणी देवी अम्बपाली की जय -जयकार घोषित कर रहे थे। सेनानायक सबसे आगे एक पंचकल्याणी अश्व पर सवार स्वर्ण- तार के वस्त्र पहने चांदी का तूर्य बजा - बजाकर बारम्बार पुकारता जाता था ____ “ नागरिको , एक ओर हो जाओ, मधुपर्व की रानी जनपद- कल्याणी देवी अम्बपाली की सवारी आ रही है। देवी मधुवन को जा रही हैं , उन्हें असुविधा न हो , सावधान ! " घोषणा करके ज्यों ही वह आगे बढ़ता , मार्ग नरमुण्डों से भर जाता। कोलाहल के मारे कान
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