"प्राची को चढ़, गायत्री छन्द , रथन्तर साम , त्रिवृत् स्तोम, वसन्त ऋतु और ब्रह्मधन तेरी रक्षा करें ! _ “ दक्षिण को चढ़ , त्रिष्टुभ छन्द, बृहत् साम, पंचदश स्तोम , ग्रीष्म ऋतु और क्षत्रधन तेरी रक्षा करें ! “ पश्चिम को चढ़ , जगती छन्द , वैरूप साम, सप्तदश स्तोम ,वर्षाऋतु और विशधन तेरी रक्षा करें ! ___ “ उत्तर को चढ़, अनुष्टुप् छन्द , वैराज साम , एकविंश स्तोम, शरद् ऋतु और फलरूपी धन तेरी रक्षा करें ! " ___ " ऊपर को चढ़, पंक्ति छन्द, शाक्वर रैवत साम, सत्ताईस और तैंतीस स्तोम, हेमन्त शिशिर ऋतु और वर्चस् धन तेरी रक्षा करें ! " फिर राजा ने व्याघ्रचर्म के नीचे रखे सीसे को ठोकर मारी, अध्वर्यु ने मन्त्र पढ़ा, फिर राजा व्याघ्रचर्म पर बैठा। सोने का एक चन्द्र राजा के पैरों पर रखा गया । अध्वर्यु ने कहा - “ मृत्यु से बचा ! ” । सौ छिद्रवाला स्वर्ण का मुकुट सिर पर धारण कराया गया । अध्वर्यु ने कहा - “ तू ओज है, अमृत है, विजय है ! " राजा ने दोनों भुजा ऊंची करके घोष किया " हे मित्र वरुण , अपने रथ पर चढ़ो और दिति - अदिति सीमाबद्ध और असीम को देखो। ” अब अध्वर्यु और पुरोहित ने पलाश के पात्र में रखे जलों से फिर राजा का अभिषेक किया । ब्रह्मा ने मन्त्र -पाठ किया। अध्वर्यु ने फिर उच्च स्वर से घोषित किया - “ हे देवो , इसे उत्तेजित करो। कोई इसका सपत्न न हो । बड़े क्षत्र के लिए, बडे बड़प्पन के लिए , बड़े मनुष्यों पर राज्य के लिए, इन्द्र के इन्द्रिय के लिए, कोसल जनपद के लिए यह राजा महाराजा विदूडभ तुम कोसलों का राजा है। हम ब्राह्मणों का राजा सोम है। " तब अठारह दक्षिणावर्त शंख एक साथ फिर फूंके गए । अब रथविमोचनीय होम हआ और भिन्न-भिन्न मन्त्र पढ़कर रथ के अंग - प्रत्यंग होम किए गए । राजा को व्याघ्रचर्म के ऊपर खदिर की चौकी पर रखे हुए सिंहासन पर बैठाया गया और राजा ध्रुतव्रत घोषित किया गया । फिर द्यूत हुआ । बहेड़े के पांसे लाए गए। रत्न राजा को घेरकर बैठे । अध्वर्यु ने राजा को यज्ञकाष्ठ से पीटा । राजा ने कहा - ब्रह्मन् ! अध्वर्यु- तू ब्रह्मा है, तू सत्यप्रणेता सविता है । राजा ब्रह्मन् ! अध्वर्यु- तू ब्रह्मा है, तू प्रजाओं का बलवान् इन्द्र है । राजा - ब्रह्मन् ! अध्वर्यु-तू ब्रह्मा है, तू कृपालु रुद्र है । राजा ब्रह्मन् !
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