पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३१३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आए। बाहर कारायण के सैनिकों ने अनायास ही दुर्गरक्षक सेना के सिपाहियों को काट डाला था । वे सावधान नहीं थे, इससे कुछ प्रतिरोध भी न कर सके । दुर्गपति ने जो विपत्ति - घण्ट बजाया था उसे सुनकर जो सैनिक निकट के गांव से सहायतार्थ दौड़े थे, उन्हें मारकर कारायण के सैनिकों ने पुल पार कर दुर्गपति को सपरिवार बन्दी कर लिया था । दुर्गपति इस आक्रमण से सर्वथा असावधान थे। वे कारायण के सैनिकों को अपने सैनिक समझे थे। दिन का प्रकाश इस समय तक पूर्वाकाश में फैल गया था । कुण्डनी और नाउन अश्वत्थ पर चढ़ीं सब गतिविधि देख रही थीं । अट्टालिका में अपने आदमियों को फिर से लौटा हुआ समझ वे भी वृक्ष से उतरकर वहीं आ गईं । सोम और विदूडभ दोनों आहत थे। कुण्डनी ने नाउन की सहायता से उनके घाव बांधे। इसके बाद उन्होंने शम्ब को चारों ओर देखा । शम्ब वहां नहीं था । सब लोग शम्ब को भूल ही गए थे । सोम को याद आया कि शम्ब को हमने गर्भगृह में युद्ध करते छोड़ा था । कुछ सैनिक फिर गर्भगृह में गए , परन्तु शम्ब वहां नहीं था । सबके चले जाने पर गर्भगृह में अन्धकार हो गया । शम्ब समझ ही नहीं सका कि सब कहां लुप्त हो गए । अपने प्रतिद्वन्द्वी को भूपतित करके शम्ब ने मार्ग की बहुत खोज टटोल की । अन्त को वह उसी जलगर्भ -स्थित मार्ग से लौटा । जब सब कोई शम्ब के लिए चिन्तित थे, कुण्डनी ने उसे जल में तैरते हुए देखा । जल से निकलकर वह स्वामी के निकट आया । वह बहुत प्रसन्न था । बन्दियों को सेनापति कारायण को सौंप , सोम ने शरीररक्षक सैन्य - सहित आहत राजकुमार को लेकर तुरन्त राजधानी की ओर कूच किया । शम्ब , कुण्डनी और नाउन भी उन्हीं के साथ चल दिए ।