पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३११

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कुण्डनी ने नाउन से कहा - " चलो हला , अब हम अपने उद्योग का दूसरा प्रकरण पूरा करें । बाहर कहीं शम्ब हैं , पहले उसे देखना होगा । निश्चय उसी की प्रतिक्रिया होने से सैनिकों ने तुरही -नाद किया था , इससे वह बन्दीगृह के उस ओर कहीं होगा। " इतना कह कुण्डनी नाउन का हाथ पकड़कर बाहर आई। उसने उसी अश्वत्थ वृक्ष के नीचे खड़े होकर संकेत किया , शम्ब झट वृक्ष पर से कूद पड़ा । कुण्डनी ने कहा - “ शम्ब , तेरा स्वामी कहां है ? " " वे जल में गए हैं । ” “कितना विलम्ब हुआ ? ” । " बहुत , एक दण्ड काल। " " तो शम्ब , वे विपद में पड़ सकते हैं , तू साहस कर ! " शम्ब ने हुंकृति की । कुण्डनी ने कहा - “ वह बन्दीगृह देख रहा है ? " शम्ब ने सिर हिलाया । कुण्डनी ने कहा - “ उसका प्रवेशद्वार जलमग्न है । तू गोता लगा । ठीक उस अलिन्द के मध्य भाग के नीचे एक गुहा-छिद्र मिलेगा। वह उन्नत सोपान है । उसमें घुसकर तू बन्दीगृह में पहुंचेगा । उसी में तेरे स्वामी का मित्र बन्दी है, जिसके उद्धार के लिए सोम वहां एकाकी गए हैं । परन्तु उनके सामने सोलह योद्धा हैं । शम्ब , तू साहस कर। " शम्ब ने दण्डसत्थक दृढ़ता से हाथ में थामा और धनुष -बाण कुण्डनी को देकर कहा - " इसमें से केवल चार बाण कम हुए हैं । बारह बाण अभी तूणीर में हैं । इससे देवी की रक्षा हो सकती है । मेरे लिए यह यथेष्ट है। ” उसने हंसकर दण्ड - सत्थक की ओर संकेत किया । कुण्डनी ने धनुष -बाण ले लिया । शम्ब ने रस्सी का छोर कमर से बांधते हुए कहा - “ यह रस्सी थामे रहें देवी । जब यह ढीली हो तो समझना , शम्ब ठीक स्थान पर पहुंच गया । कुण्डनी ने रस्सी थाम ली । शम्ब ने धीरे - से जल में प्रवेश किया और अदृश्य हो गया । थोड़ी ही देर में रस्सी ढीली हो गई। कुण्डनी ने नाउन से कहा - " हला, सोम को सहायता पहुंच गई । उधर से भी और इधर से भी । अब हमें इस अश्वत्थ पर चढ़कर बैठना चाहिए और परिणाम की प्रतीक्षा करनी चाहिए । " सोम उस कोष्ठक में चारों ओर घूमते , हाथों से टटोलते , खड्ग की मूठ से दीवार और फर्श ठोकते, परन्तु कोई फल न होता था । वहां से कहीं जाने का कोई द्वार नहीं दीख पड़ता था । वे हताश होकर बैठ जाते और फिर उद्योग करते । बहुत देर बाद उन्हें कोठरी में प्रकाश का आभास हुआ । वे ध्यान से देखने लगे कि प्रकाश यहां कहां से आया । उन्हें कुछ ही क्षणों में प्रतीत हो गया कि ऊपर छत में एक छिद्र है, प्रकाश वहीं से आ रहा है । इसी समय चार मनुष्य उस छिद्र में से उस कोष्ठक में कूद पड़े । एक के हाथ में प्रकाश था । सोम उन्हें देखकर फुर्ती से गुहाद्वार में छिप गए। चार मनुष्यों में से एक ने कहा - “मैं बन्दी को देखता हूं , तुम यहीं यत्न से द्वार की रक्षा करो । ” उसने किसी युक्ति से तल - भूमि की एक शिला को हटा दिया और उसमें घुस गया । सोम ने देखा , वह मल बन्धुल था । सोम एकबारगी ही खड्ग लेकर उन मनुष्यों पर टूट पड़े । वे मनुष्य भी साधारण