पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३०९

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से द्वार - सुरंग उन्हें मिल गई । वे द्वार - सुरंग में प्रविष्ट हो गए । सुरंग सीढ़ी की भांति उन्नत होती गई थी । दस पैढ़ी ऊपर जाने पर उनका सिर जल से बाहर निकला । क्षण - भर ठहरकर उन्होंने यहां सांस ली और रस्सी कमर से खोल दी । फिर वे चार - पांच पैढ़ी चढ़े । अब उन्हें वह लौह- द्वार मिला, जहां भारी यन्त्रक लगा था । सूत्रिका उनके पास थी , उससे उन्होंने यन्त्रक खोल डाला । गुहा में घोर अन्धकार था । वायु का भी प्रवेश न था । उस छोटी - सी जगह में उनका दम घुट रहा था । यन्त्रक खोलते ही वे एक दूसरी छोटी - सी कोठरी में जा पहुंचे, जो चारों ओर से पत्थरों की दीवारों से घिरी थी । उसमें कोई दूसरा द्वार न था । प्रकाश का साधन सोम के पास न था । वे टटोलकर चारों ओर उस कोठरी में घूमने लगे । वे सोच रहे थे, यदि यही बन्दीगृह है तो बन्दी कहां है ? यदि बन्दीगृह और है तो उसका मार्ग कहां है? परन्तु उन्हें इसका कोई भी निराकरण नहीं मिल रहा था । वे अन्त को एक बार विमूढ़ हो उसी कोठरी में बैठ गए। उधर, ज्यों ही सोम ने रस्सी कमर से खोली, रस्सी ढीली हो गई। शम्ब आश्वस्त हो हंसते हुए रस्सी का सिरा छोड़ अश्वत्थ पर चढ़ गया और अच्छी तरह ढासना मार आसन जमा बैठ गया । बैठकर उसने ध्यानपूर्वक आलिन्द की ओर देखा । दो छाया - मूर्तियां वहां अन्धकार में घूम रही थीं , शम्ब ने बाण सीधा किया और कान तक तानकर छोड़ दिया । बाण उस व्यक्ति की पसलियों को चीरता हुआ फेफड़े में अटक गया । वह व्यक्ति झूमकर अलिन्द के किनारे तक आया और छप से जल में गिर गया । दूसरे व्यक्ति को यह पता नहीं लगा कि क्या हुआ । वह आश्चर्य- मुद्रा में झुककर उस पुरुष को देखने लगा । इसी समय दूसरे बाण ने उसके कन्धे में घुसकर उसे भी समाप्त कर दिया । वह पुरुष भी वहीं अलिन्द में झूल पड़ा। ___ शम्ब अपनी सफलता पर बहुत प्रसन्न हुआ। वह अब ध्यान से तीसरे शिकार की ताक में बैठ गया । थोड़ी ही देर में दो सैनिक बातें करते हुए अलिन्द में आए और प्रहरी को इस भांति लटकते देख उनमें से एक ने उसका नाम लेकर पुकारा । उत्तर न पाकर वह निकट आया । निकट आकर देखा वह पुरुष मृत है। एक बाण उसके अंग में घुस गया है । दोनों प्रहरी भीत हो एक - दूसरे को देखने लगे । इसी समय शम्ब का तीसरा बाण सनसनाता हुआ आकर उनमें से एक के वक्षगह्वर में पार हो गया । वह पुरुष रक्त - वमन करता हुआ वहीं गिर गया । दूसरे सैनिक ने आतंकित हो तरही फंकी। तुरही की तीव्र ध्वनि शून्य में दूर - दूर तक गूंज उठी । उसी समय शम्ब का चौथा बाण उसके कण्ठ के आरपार हो गया । तुरही उसके हाथ से छूट पड़ी । वह मृत होकर वहीं गिर गया । परन्तु तुरही का शब्द अट्टालिका के लोगों ने सुन लिया । शब्द सुनते ही वहां के मनुष्यों में प्रगति प्रकट हुई। वाद्य - नृत्य बन्द हो गया और मनुष्यों की दौड़ - धूप, चिल्लाहट के शब्द सुनाई देने लगे। शस्त्रों की झनझनाहट भी सुनाई देने लगी । कारायण अपने दो सौ भटों को लिए पूर्व नियोजित योजना के अनुसार इस अट्टालिका के चारों ओर अत्यन्त अप्रकट रूप से घेरा डाले पड़े थे। उन्होंने सैनिकों को आवश्यक आदेश दिए और वे अट्टालिका से बाहर निकले मनुष्यों पर प्रहार करने को सन्नद्ध हो गए। परन्तु यह देखकर उनके आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा कि अट्टालिका का