पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३०८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

85 . कठिन अभियान सब योजना ठीक कर ली गई । सिक्थ - मुद्रा मिल गई । उस पर से सूत्रिका बन गई । नाउन को संग लेकर कुण्डनी ने एक पहर दिन रहे नटनी के वेश में दुर्ग की ओर प्रस्थान किया । चलती बार वह अपनी विषदग्ध कटार को यत्न से वेणी में छिपाना नहीं भूली। सोम ने दिन - भर सोकर काटा था । सूर्यास्त के समय उन्होंने सर्वांग पर तैलाभ्यंग किया , एक कौपीन कसी और कठिन कंचुक पहन एक क्षौम प्रावार से शरीर को लपेट लिया । खड्ग उन्होंने वस्त्र में छिपा लिया । __ शम्ब को एक मजबूत बड़ी रस्सी और दण्डसत्थक दी गई। एक छोटा धनुष और कुछ बाण भी उसे दिए गए। उसे भी तैलासक्त कर कौपीन धारण कराया गया । इसके बाद दोनों ने एक दण्ड रात्रि व्यतीत होने पर गहन कान्तार में प्रवेश किया । ___ इसी समय कारायण ने अपने दो सौ सैनिकों की टुकड़ी लेकर दूसरे मार्ग से कोसल दुर्ग की निकटवर्ती अट्टालिका की ओर कूच किया । कान्तार भूमि सोम ने भलीभांति देखकर मार्ग की खोज कर ली थी , इसलिए अन्धकार होने पर भी वे दो मुहूर्त ही में दुर्ग के दक्षिण द्वार के सामने पहुंच गए । अपने अश्वों को उन्होंने कान्तार में छिपाकर लम्बी बागडोर से बांध दिया । इसके बाद उन्होंने निःशब्द दुर्ग - द्वार की ओर प्रयाण किया । द्वार के बाहर जो अट्टालिका थी , उसमें काफी चहल -पहल थी । उसमें से नृत्य - गीत की और बीच- बीच में मनुष्यों के उच्च हास्य की ध्वनि आ रही थी । सोम ने समझ लिया कि यहां कुण्डनी का रंग जमा हुआ है। बन्दीघर के ऊपर अलिन्द पर प्रकाश न था । परन्तु दो छाया - मूर्तियां वहां घूमती दीख रही थीं । सोम पाश्र्व में पूर्व की ओर घूमकर एक अश्वत्थ वृक्ष के निकट पहुंचे। अश्वत्थ के तने में उन्होंने रस्सी का एक सिरा दृढ़ता से बांधा, तथा दूसरे को अच्छी तरह कमर में बांध दिया । शम्ब से कहा - “ शम्ब, सामने केवल दो छाया मूर्तियां अलिन्द में दीख रही हैं । आवश्यकता होने पर वे आठ हो सकती हैं । इससे अधिक नहीं। ध्यान से सुन , मैं जल में जाता हूं। तू रस्सी को थाम रह, ज्यों ही वह ढीली प्रतीत हो , तू वृक्ष पर चढ़कर छिपकर यत्न से बैठ जाना । तेरे तरकस में सोलह बाण हैं । याद रख , एक भी बाण व्यर्थ न जाए और अलिन्द पर एक भी जीवित पुरुष खड़ा न रहने पाए। परन्तु प्रथम रस्सी का ध्यान रखना। " शम्ब ने सिर हिलाकर स्वीकार किया। वह दण्डसत्थक को हाथ में ले दूसरे हाथ से रस्सी को थाम खाई के किनारे बैठ गया । सोम ने चुपचाप जल में प्रवेश कर निःशब्द डुबकी लगाई । रस्सी की बैंच बढ़ गई । वह वृक्ष के तने में अच्छी तरह बंधी हुई थी । शम्ब उसका छोर हाथ में लिए ध्यान से उसका तनाव देख रहा था । सोम निःशब्द जल के भीतर - ही - भीतर बन्दीगृह के द्वार पर जा पहुंचे। थोड़े ही यत्न