पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३०६

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लिए कह दूंगा । ” आचार्य ने गद्गद होकर कहा। सोम ने कहा “ आचार्य, वहां युक्ति -बल से काम चलेगा। बन्दीघर का द्वार जलमग्न है। उसमें एक भारी यन्त्रक जुड़ा है । उसकी सूचिका चाहिए , यह एक बात है।... ___ “ दुर्ग के बाहर मल्ल बन्धुल स्वयं पचास भटों के साथ अत्यन्त सावधानी से बन्दी पर पहरा दे रहा है । उससे सम्मुख युद्ध नहीं हो सकता। कूटयुद्ध करना होगा। यह दूसरी बात है..... ___ " हम लोग दुर्ग पर आक्रमण करके बलपूर्वक युवराज का उद्धार करेंगे, इसका गुमान भी यदि बन्धुल को हो गया तो वह राजकुमार की हत्या कर सकता है । अभी तक उसने जो उन्हें हनन नहीं किया , इसका कारण यही प्रतीत होता है कि वह उनसे महाराज का पता पूछना चाहता है । यह तीसरी बात है..... ___ “ दुर्गपति बड़ा कठोर और एकान्त व्यक्ति है। बन्दी के गृहद्वार की सुत्रिका उसी के पास रहती है, वहां से उसका प्राप्त होना असम्भव है । यह चौथी बात है..... “ दुर्ग में बाहर - भीतर सब मिलकर सौ आदमी हैं । जिसमें पचास भट बन्धुल के साथ अट्टालिका में हैं । शेष उस गांव में । दुर्ग में केवल दो - दो भट एक - एक प्रहर बन्दीगृह पर पहरा देते हैं , परन्तु आवश्यकता होने पर तुरन्त सहायता प्राप्त हो सकती है। आचार्य ने सब सुनकर कहा - " क्या तुमने कोई योजना निश्चित की है सौम्य ? " “ की है, किन्तु वह अपूर्ण है आचार्य! मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं । " “ किसकी भद्र ? ” “ एक लम्पट धूर्त की ? " “किस अभिप्राय से ? " वह युवराज को उड़ाने के षड्यन्त्र में सम्मिलित था । उसने स्वर्ण लेकर मझे अपना सब भेद बता दिया है और सूत्रिका की सिक्थ -मुद्रा मुझे ला देने का वचन दिया है। वह मुझे दो दण्ड दिन चढ़े तक मिलेगा । वह अपने उद्योग में संलग्न है। " " क्या भद्र, वह छल नहीं करेगा ? " देवी नन्दिनी ने कहा । “ आशा तो नहीं है देवी । उसे भारी पारिश्रमिक मिल चुका है। केवल सुत्रिका की सिक्थ- मुद्रा ला देने से ही उसे सहस्र स्वर्ण की प्राप्ति और होगी, जो वह जीवन - भर में संग्रह नहीं कर सकता। ” " तो भद्र, तुम हमें क्या करने को कहते हो ? ” गान्धार - पुत्री कलिंगसेना ने सुनील नेत्रों से उसकी ओर देखकर कहा- “मैं अपनी सामर्थ्य से दुर्ग में पहुंच भर सकती हूं। परन्तु यह क्या यथेष्ट होगा ? " नहीं भद्रे ! यथेष्ट भी न होगा और उचित भी नहीं होगा। " “किन्तु भद्र, यदि तुम्हें सिक्थ-मुद्रा न मिली तो ? ” आचार्य ने चिन्तित भाव से पूछा । " तो भी मैं देख लूंगा आचार्य ! किन्तु मैं अभी एक बार सेनापति कारायण से मिलना चाहता हूं। हां , आपको राजपुत्र की कब आवश्यकता होगी ? " “कल तीन दण्ड सूर्य चढ़ने पर । वही मुहूर्त अभिषेक का है। अभी तक महाराज