पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२९७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

“ आचार्य अजित केसकंबली के मुंह से । वे आज प्रातःकाल ही देवी कलिंगसेना को अनुष्ठान कराने के बहाने उनके प्रासाद में गए वहां विचार -विनिमय हुआ । महाराज प्रसेनजित् को राजकुमार ने बन्दी करके अज्ञात स्थान पर भेज दिया है । " “ यह तो मैं पहले ही समझ गया , परन्तु कुमार विदुडभ ? " " उन्हें सम्भवतः बन्धुल मल्ल ने बन्दी कर लिया है । " “ बन्धुल क्या यहां है ? " " वे कल ही सीमान्त से आए हैं । " " तो कुण्डनी, इस सम्बन्ध में हमें क्या करणीय है ? " " देवी कलिंग तुम्हें देखना चाहती हैं । " " किसलिए ? " “ राजकुमार की मुक्ति के लिए वे तुमसे सहायता की याचना करेंगी। " " परन्तु मैं क्यों सहायता करूंगा ? " " देवी ने चम्पा की राजकुमारी की मुक्ति में हमारी सहायता की थी ? " “ की थी । ” सोम ने धीरे - से कहा। वे उठकर टहलने लगे। कुछ देर बाद उन्होंने कहा - “ कुण्डनी, मैं इसी समय आर्य उदायि से मिलना चाहता हूं। " “ ठहरो सोम , मुझे बताना होगा , किसलिए ? " कुण्डनी की मुद्रा कठोर हो गई । सोम ने रूखे स्वर में कहा - “ अकथ्य क्या है ? मागधों के लिए यह स्वर्ण- सुयोग है , मागध बदला लेंगे। कोसल- जय का यह स्वर्णयोग है। वे कोसल को आक्रान्त करेंगे । " " परन्तु किससे बदला लेंगे सोम ? " " कोसलों से ? ” “ कहां हैं वे कोसल , विचार तो करो ! क्या तुम विश्वासघात करने जा रहे हो सोम ? "किससे ? क्या शत्रु से ? उसमें विश्वासघात क्या है? मेरे पास इस समय दस सहस्र मागध सेना है, मैं दो घड़ी में कोसल को आक्रान्त करके कोसल का अधीश्वर बन जाऊंगा। फिर मैं चम्पा की राजनन्दिनी को परिशोध दूंगा । " “किस प्रकार ? ” " कोसल की पट्टराजमहिषी बनाकर । " " तो सोम , विद्वानों का यह कथन सत्य है कि जन्म से जो पतित होते हैं उनके विचार हीन ही होते हैं । " " इसका क्या अभिप्राय है कुण्डनी ? " “ यही कि तुम अज्ञात -कुलशील हो ! मैंने तुम्हारा शौर्य और तेज देख तुम्हें कुलीन समझा था , पर अब मैंने अपनी भूल समझ ली । " “ क्या ऐसी बात ? ” सोम ने कुण्डनी के मस्तक पर खड्ग ताना । " सत्य है, सत्य है, यह समुचित होगा । पहले कुण्डनी का वध करो, फिर मित्र के साथ विश्वासघात करके कोसल का सिंहासन और चम्पा की राजकुमारी को एक ही दांव में प्राप्त करो। ” "मित्र के साथ विश्वासघात क्यों ? सोम ने चिल्लाकर कहा ।