"तब क्या करना होगा?"
"दो कार्य, एक नगर की रक्षा का सुदृढ़ प्रबन्ध, दूसरे बन्धुल की गतिविधि पर सतर्क दृष्टि।"
"तब ऐसा ही हो आचार्य! परन्तु क्या हम कुमार की ओर से निश्चिंत बैठे रहें?"
"निश्चिन्त क्यों सेनापति? कुमार कहां हैं, पहले इसका पता लगाया जाए, पीछे उन्हें छुड़ाया जाए। बन्धुल अवश्य ही अत्यन्त गुप्त रूप से कुमार से मिलने जाएगा और उन्हें डरा-धमकाकर महाराज का पता पूछेगा। ऐसी स्थिति में उसका अत्यन्त छद्मवेश में बहुत सावधानी के साथ पीछा होना चाहिए।"
"ऐसा ही होगा आचार्य!"
"एक बात और, वत्स-राज्य की सीमा पर जो सेना है, उससे किसी भी दशा में बन्धुल का सम्बन्ध-सम्पर्क नहीं रहना चाहिए। इसके लिए पूरा सतर्क रहना होगा। उसका कोई चर सीमान्त पर न पहुंचने पाए, उसे तुरन्त बन्दी कर लिया जाए और बन्धुल को भी इसका पता नहीं लगना चाहिए।"
"समझ गया, आचार्य, मैं ऐसी ही व्यवस्था करूंगा।"
"तो सेनापति, तुम समुचित व्यवस्था करो। एक बात और है!"
"वह क्या?"
"कुमार का मित्र एक मागध तरुण श्रावस्ती में है, उसे ढूंढ़ने में वैद्य जीवक को सहायता देनी होगी।"
"अच्छा आचार्य!"
"सेनापति अभिवादन कर वहां से चल दिया।"