पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२६९

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सोम ने लज्जा से आंखें नीची कर लीं और मन्द स्वर से कहा - “ भन्ते भगवान् वह चम्पा - पतन के बाद आपकी शरण में श्रावस्ती आ रही थीं । मार्ग में तस्कर दास-विक्रेताओं के फंदे में फंस गईं। उन्होंने उन्हें यहां श्रावस्ती में लाकर दासों के हट्ट में बेच दिया । " " बेच दिया ! क्या कहते हो भद्र? " . " हां भगवान्, महाराज प्रसेनजित् से नवविवाह के उपलक्ष्य में राजमहिषी मल्लिका को नियमानुसार महाराज को भेंट करने के लिए एक दासी की आवश्यकता थी । उसी काम के लिए राजमहालय के कंचुकी ने स्वर्णभार देकर कुमारी को क्रय कर लिया । " । ___ “ शान्तं पापं ! क्या महिषी मल्लिका ने उसे दासी -भाव से महाराज को भेंट करने के लिए क्रय किया है ? " " हां भन्ते ! ” " तुम कौन हो भद्र! ” “ मैं मागध हूं। " " ओह! ” भगवान् महावीर नीची दृष्टि किए कुछ देर सोचते रहे। फिर बोले - “ तो क्या कुमारी को यह ज्ञात है कि वह कर्म -विपाक से शत्रु से उपकृत हुई है ? " " ज्ञात है भन्ते । ” " तुम्हीं ने राजकुमारी की सहायता की है? " " भन्ते, कुमारी की एक सखी और है। " “ वह कौन है ? " “ मागधी ही है। चम्पा के पतन के बाद, कुमारी की रक्षा और व्यवस्था हम लोगों ने शक्ति - भर की है । ” सोम ने अपने स्त्री - वेश में अन्तःपुर में प्रवेश का भी वर्णन कर दिया । सब सुनकर श्रमण महावीर ने कहा - " तुम्हारा नाम क्या है भद्र ? " " सोम , भन्ते ! " __ “ अच्छा तो सोमभद्र , तुम मुहूर्त - भर वहां उपाश्रय में प्रतीक्षा करो। तब मैं तुमसे बात करूंगा और उस पीठिका पर से सामनेर को मेरे पास भेज दो । " सोम ने अभिवादन करके स्वीकार किया । वह चले गए। सामनेर ने श्रमण के सम्मुख आकर वन्दना की । श्रमण ने कहा - “ भद्र, हम अभी राजकुमार विदूडभ को देखा चाहते हैं । " " भगवान् की जैसी आज्ञा ! " सामनेर चेला गया । महावीर स्वामी गहन चिन्ता में मग्न हो गए ।