पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२६६

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पी , तुझे क्या पुरस्कार नहीं मिला ? " “ नहीं , हन्दजे। " " तो जल्दी जा मूर्खे, सभी को रत्नभाण्ड मिल रहे हैं । " दासी ने और विवेचना नहीं की । वह तेजी से अन्तःपुर की ओर भागी। उधर नर्तकियां चर्चरी ताल के साथ नाच - गा रही थीं । उनकी सम्मिलित ध्वनि यहां भी आ रही थी । ___ कुण्डनी फिर चुपचाप कुमारी के पास जाकर बैठ गई। कुछ देर उनके मुंह से शब्द नहीं निकला। फिर उसने कहा - " राजकुमारी, यहां से भागो। ” राजकुमारी ने आंसू- भरे नेत्रों से कुण्डनी की ओर देखा । कुछ कहना चाहा, पर केवल ओठ हिलकर रह गए । हठात् उन्होंने भय और आशंका से सोम की ओर देखा । सोम लज्जा और ग्लानि से डूबे हुए भीत में चिपककर चुपचाप खड़े थे। कुण्डनी ने फुसफुसाकर कहा - “ सोम है, सखी ! ” सुनकर राजकुमारी चमत्कृत हुईं । उन्होंने बड़ी- बड़ी आंखें उठाकर सोम को देखा । सोम के स्त्री - वेश को देख इस विपन्नावस्था में भी उनके ओठों पर क्षणा- भर को मुस्कान फैल गई । कुछ देर बाद राजकुमारी ने कहा " अब ? " " यहां से भागो। " " क्या यह सम्भव है? " “निरापद तो नहीं है । " सोम ने आगे बढ़कर कहा - “मेरे पास खड्ग है, चिन्ता नहीं। " कुण्डनी ने कहा- " फिर साहस करने के अतिरिक्त और उपाय ही क्या है? " " है सखि ! ” " तो कहो कुमारी! ” " भगवान महावीर। " “ वे श्रावस्ती में हैं ? ” “हैं , मैं जानता हूं। " " उन तक मेरा संदेश ले जाओ, फिर जैसा वे समझें। " “ मैं उनसे क्या कहूं भद्र? " " कहना भद्र , कि चम्पा की दग्धभाग्या कुमारी चन्द्रभद्रा बद्धांजलि शरणागत है, प्रसाद हो । " “किन्त कुमारी, इस कार्य में समय लगेगा। तब तक यदि कुछ अनिष्ट हो ? " ___ " नहीं होगा। मैंने तीन दिन व्रत - उपवास का समय मांग लिया है । कल सन्ध्या तक मेरे पास कोई नहीं आएगा । " ___ " तो कुण्डनी , यही ठीक है। कुमारी का यहां से निकलने की अपेक्षा यहां रहना ही ठीक है । परन्तु क्या भगवान् महावीर सहायता करेंगे? " " करेंगे भद्र! ” राजकन्या ने फिर आंसू-भरी बड़ी -बड़ी आंखों से सोम को देखा । “ किन्तु यदि सफलता नहीं मिली? " " तो भद्र , फिर जो उचित हो सो करना । ” इतना कह वह फफक -फफककर रो