पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२६१

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“ यदि ऐसा है, तो मैं कौशाम्बी को जलाकर छार न करूं तो बन्धुल नहीं। " " भन्ते सेनापति , इसी से मेरी सम्मति में आपका ही सीमान्त पर जाना ठीक है । रक्षा भी होगी , यथार्थ का पता भी लगेगा । " " तो महाराज, मुझे सीमान्त पर जाने दीजिए। " “ जा मित्र! परन्तु यहां तेरे बिना मैं अकेला हूं। " “ महाराज इस समय यज्ञ - अनुष्ठान में व्यस्त हैं। पुर , पौरजन तथा राज पुरुषों से परिवृत्त हैं । चिन्ता की बात नहीं। मैं सीमान्त जाता हूं। " बन्धुल ने उसी समय सीमान्त पर प्रयाणा किया । तब तक कारायण को बन्दीगृह में भेज दिया गया ।