सामग्री भेंट में लाए थे । ये सब राजा - महाराजा और सरदार - जमींदारी भीड़ के मारे भीतर घुसने का स्थान न पाकर बाहर द्वार पर ही खड़े थे। सैकड़ों ग्रामवासी प्रधान घी से भरे सोने - चांदी के घड़े हाथों में लिए राह न मिलने के कारण बाहर ही खड़े रह गए थे। कुरु के जनों और पहाड़ी राजाओं ने ब्राह्मणों और श्रोत्रियों के काम की बड़ी - बड़ी सुन्दर मृगछालाएं तथा मज़बूत पहाड़ी टटू भेजे थे। कलिंगराज सत्तभू दरवाज़े पर भीड़ देखकर मूल्यवान् रत्नजटित गहने और हाथीदांत की मूठों वाले खड्ग तथा काली गर्दनवाले और सौ कोस तक दौड़नेवाले हज़ार खच्चर भीतर भेजने की व्यवस्था कर अपने देश को लौट गए। उत्तरकुरु के देवदिव्य औषध, अम्लान , पुष्पमाल, कदली और मृगचर्म लेकर आए खड़े थे। क्रूरकर्मा असभ्य किरात , खस और दर्दुर विविध पशु -पक्षियों का शिकार लेकर तथा पांच सौ युवती दासियां लेकर आए थे । अनेक राजा लोगों ने द्वार पर जाकर देखा कि दण्डधर दौवारिक लोगों की राह रोककर विनयपूर्वक कह रहे हैं - " भन्ते , तनिक ठहरिए । यथासमय क्रमशः आप भीतर जा सकेंगे। महाराज आपके उपानय भी ग्रहण करेंगे। मगध के सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार ने लम्बे दांतों तथा सुनहरी झूलोंवाले सौ मस्त हाथी और इतने ही वायुवेगी अश्व , जो सुनहरी साज से सजे थे, भेंट भेजे थे। इसी प्रकार अनेक राजा- महाराजा , गणपति , सेट्ठी, नगरसेट्टि और पौर जानपद प्रमुखों ने विविध उपानय वस्तुएं महाराज प्रसेनजित् को प्रसन्न करने के लिए भेजी थीं । पश्चिमी गान्धार के अधिपति कलिंगसेन ने आम के पते के समान रंगवाले अपूर्व सोलह अश्व और दो सौ नवनीत - कोमलांगी गान -वाद्य - यूत -निपुणा कुमारियां भेजी थीं । आगत जनों के लिए कोसलपति ने स्वागत - सत्कार की समुचित व्यवस्था की थी । सहस्रों सेवक, दास , कमकर लोगों को खिलाने-पिलाने, ठहराने तथा उनके वाहनों की व्यवस्था में लगे हुए थे। सैकड़ों कर्णिक लेखा-जोखा लिख-लिखकर उपानय सामग्री कोठार में पहुंचाते तथा रसद तोल रहे थे। कहीं कच्ची रसद तोल -तोलकर बांटी जा रही थीं ,कहीं अन्न पकाया जा रहा था । साधु, श्रमण,निगण्ठ , श्रोत्रिय लोग भक्ष्य , भोज्य , चूष्य , लेह , चव्य आदि विविध पदार्थों का आस्वाद ले रहे थे। चारों ओर ऐसा कोलाहल हो रहा था कि कान नहीं दिया जाता था । जगह - जगह पुण्याह पाठ हो रहा था । अभ्यागतों को भोजन , वस्त्र ,स्वर्ण, गौ , रत्न दान दिया जा रहा था । यज्ञ -कार्य के निमित्त अजित केसकम्बली,हिरण्यकेशी, बोधायन , भारद्वाज , शौनक , जैमिनि , गौतम , शाम्बव्य ,कणाद, औलूक, सांख्यायन , वैशम्पायन पैल , सायण,स्कन्द कात्यायन आदि वेद- वेदांग - वेत्ता , षडंग वेदपाठी, षोडषोपचार संस्कर्ग, षष्ठी तन्त्र , गणित ,शिक्षा, कल्प ,व्याकरण, छन्द व्युत्पत्ति , ज्योतिष तथा नीति - शास्त्रादक ज्ञाता महाश्रोत्रिय अट्टासा ब्राह्मण प्रमुख कर्ता नियत किए गए थे, जिनमें से प्रत्येक की सेवा के लिए राजा ने सोलह- सोलह रूपगुणालंकृता दासियां नियत की थीं । सहस्र ऊध्वरता ब्रह्मचारी नित्य स्वर्ण- थाल में हविष्य भोजन करते और अखण्ड सामगान करते थे। राजाओं और सरदारों की लाई हुई सहस्रों जंगली गायें जहां - तहां बंधी थीं । जगह- जगह यज्ञ बल के पवित्र पशु , बछड़े, वृषक और अन्य पशु बंधे थे। ऐसा प्रतीत होता था कि सब देश और सारे संसार की संपदा और जानपद इस समय श्रावस्ती में एकत्र हो गए हैं ।
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