67. राजसूय समारम्भ वसन्त ऋतु का प्रारम्भ था । सुन्दर शीतल मृदु सुगन्ध वायु बह रही थी । लता - गुल्म पल्लवित और द्रुम - दल कुसुमित हो रहे थे। श्रावस्ती के राजसूय की बड़ी भारी तैयारियां हो रही थीं । महाराज प्रसेनजित् की साकेत से अवाई हो रही थी । सब मार्ग-वीर्थी पताकाओं , स्वस्तिकों,ध्वजाओं से सजाए गए थे। सब सड़कें छिड़काव से ठंडी की हुई थीं । स्थान-स्थान पर कुसुम - गुच्छों के द्वार - मंडप और तोरण बनाए गए थे। शीतल चन्दन और जलते हुए अगरु की सुगन्ध महक रही थी । जहां -तहां देश -विदेश के सौदागर और धनिक जन राजपथ की शोभा निहारते घूम रहे थे । महाराज प्रसेनजित् उज्ज्वल वेश धारण किए, बारहों मल्ल बन्धुओं से रक्षित हो , एक भीमकाय हाथी पर बैठे हुए, राजमहालय की ओर आ रहे थे । शोभायात्रा में देश-विदेश के राजा , राजप्रतिनिधि , माण्डलिक और गण्यमान्य सेट्टि , ब्राह्मण श्रोत्रिय , परिव्राजक तथा ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ , जटिल सब कोई थे। राजमहालय में पहुंच राजा ने पहले अन्त : पुर में जा परिवार की स्त्रियों से भेंट की । राजमहिषी मल्लिकादेवी ने उनका पूजन किया । फिर उन्होंने खुली राजसभा में देश-विदेश से आए राजवर्गियों का स्वागत - सत्कार किया। उनके द्वारा लाई उपानय - सामग्री को साभार स्वीकार किया . काम्बोज के संघपति ने उत्तरापथ की अलभ्य वस्तुएं उपानय में भेजी थीं , जिनमें नन्दिनगर के बने हुए भेड़ , बिल्ली और मूषक के रोम से बने सुवर्ण-चित्रित मूल्यवान् वस्त्र , अजानीय अश्व , अश्वतरी और ऊंट थे । कुरु , पांचाल संघ राज्य के शासक धनञ्जय और श्रुतसोम तथा गणपति राजा दुर्मुख बहुत - से वायु - तुल्य वेग से चलनेवाले , अच्छी जाति के अश्व और बहुत - से रत्न भेंट में लेकर स्वयं आए थे। अस्सक के राजा ब्रह्मदत्त , कलिंगराज सत्तभू , कम्पिला के राजा भरत , विदेहराज रेणु , कासिराज धत्तरथ भी विविध मूल्यवान् वाहन , आसन, पलंग,पोशाक, बहुमूल्य मणियों और मोतियों से सुशोभित हाथीदांत के बने विचित्र कवच , विविध शस्त्र , सुशिक्षित घोड़ों से जुते हुए तथा सोने के तारों से खचित , व्याघ्रचर्म से मढ़े हुए रथ ,हाथी, कम्बल , रत्न ,नाराच, अर्धनाराच आदि सामग्री लाए थे । रोरुकसौवीर साकल के राजा बहुत - सा सुवर्ण तथा कार्पासिक देश की षोडशी, कुन्तला, अलंकृता सैकड़ों दासियों को भेंट में लाए थे। मद्र देश के राजा स्वर्णघटों में मलयगिरि के सुवासित चन्दन का अर्क और दर्द गिरि का अगरु, चमचमाते मणि - माणिक्य तथा सोने के तारों से बने हुए महीन वस्त्र लाए थे। दक्षिण से भोजराज्य , विदर्भ राज्य , अस्सक और दण्डक राज्यों के प्रतिनिधि बहुत - से तेजस्वी रत्न , चांदी, अलंकार, शस्त्र और वस्त्र लेकर आए थे। विदिशा के नागराज शेष के पुत्र पुरङजय भोगी ने अलभ्य विषहर मणि तथा दो सौ सुन्दरी नागकन्याएं भेजी थीं । हज़ारों गौसेवक , ब्राह्मण, श्रोत्रिय , शूद्र, संकर और व्रात्य महाराज प्रसेनजित् को प्रसन्न करने के लिए विविध उपहार लेकर आए थे। जंगली जाति के सरादार रत्न , मूंगा, स्वर्ण, भेड़, बकरी ऊंट , गाय आदि पशु, फल - फूल , फूलों का मधु आदि
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