66. विदूडभ का कूट - यन्त्र महाराज प्रसेनजित् अशांत मुद्रा में बैठे बंधुल मल्ल से कोई गुप्त परामर्श कर रहे थे । विदूडभ ने वहां प्रवेश किया । महाराज ने कहा - " बैठो राजपुत्र ! तुम श्रावस्ती अकस्मात् ही चले गए, मुझे सूचना भी नहीं दी ! ” " जाना पड़ा महाराज । ” “किसलिए पुत्र ? ” “ एक महत्त्वपूर्ण संदेश पाकर। " " कैसा ? " " क्या निवेदन करूं ? " “ कहो पुत्र ! " “ मुझे सूचना मिली थी । " " कैसी ? " " अप्रिय । ” " कहां से ? " “ सीमांत से । " “ कह पुत्र , क्या सूचना थी ? " “ कौशाम्बीपति ठीक यज्ञ के समय कोसल पर आक्रमण करेगा। " “ कहां ? कारायण ने तो नहीं लिखा। यह उसका पत्र है । वह लिखता है, चिन्ता का कोई कारण नहीं है । " " मेरे पास भी एक पत्र है महाराज । " “किसका पत्र ? " “ सेनापति कारायण का । " “ किसके नाम ? " "किसी गुप्त मित्र के नाम । " विदूडभ ने एक पत्र वस्त्र से निकालकर महाराज के हाथ में दे दिया । महाराज ने मल्ल बन्धुल को देकर कहा - “ पढ़ो बन्धुल ! " बन्धुल ने पढ़ा । उनका मुंह सूख गया । वह उलट - पुलटकर पत्र को देखने लगा । महाराज ने कहा - “ पत्र में क्या लिखा है ? " “लिखा है, ठीक...दिन कौशाम्बीपति श्रावस्ती पर आक्रमण करेंगे। मैं प्रकट में विरोध करूंगा, परन्तु भीतर से अनुकूल हूं। तुम नगर -रक्षक सैन्य को ठीक रखना । तुम्हारा प्राप्तव्य जा रहा है । " “ पत्र पर क्या कारायण के हस्ताक्षर हैं ? "
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