लाभान्वित हो सकते हो । ” " जैसी आज्ञा, आर्य! ” “ पुत्री कुण्डनी , तुझे अन्तःपुर का सब महत्त्वपूर्ण समाचार सुविदित होना चाहिए । तुम लोग नगर में छद्म वेश में रह सकते हो । हां , मल्ल बन्धुल को नष्ट कर दो । " “ जो आज्ञा आर्य! ” “ और एक बात। उपालि कुम्भकार हमारा मित्र है, भूलना नहीं। " " नहीं आर्य, नहीं। " " तो जाओ अब , तुम्हारा कल्याण हो ! " दोनों ने अभिवादन कर प्रस्थान किया । वर्षकार फिर कुछ लिखने लगे। इतने ही में पदशब्द सुनकर उन्होंने खड्ग उठाया और खड़े हुए । किसी ने मृदु- मन्द स्वर से कहा - “ वहां कौन है ? " “ यदि वयस्य यौगन्धरायण हैं , तो वर्षकार स्वागत करता है। " " स्वस्ति मित्र , स्वस्ति ! " दोनों ने अपने - अपने स्थान से आगे बढ़कर परस्पर आलिंगन किया । उस अंधकारपूर्ण गुफा में विश्व के दो अप्रतिम राजनीतिज्ञ एकत्र थे। यौगन्धरायण ने कहा “ मगध सम्राट् की पराजय का दायित्व मुझ पर ही है मित्र! " “ मैं जानता हूं , परन्तु मैं आपको दोष नहीं दे सकता । " “ सुनकर सुखी हुआ। कौशाम्बीपति ने केवल कलिंगसेना के कारण अभियान किया “किन्तु सुश्री कलिंगसेना ने प्रियदर्शी महाराज उदयन को छोड़कर विगलित यौवन प्रसेन को कैसे स्वीकार किया ? " " मेरे ही कौशल से मित्र ! " " तो क्या वह नहीं जानती थी कि प्रसेनजित् बूढ़ेहैं ? " " क्यों नहीं ! ” " तो फिर महाराज उदयन ने उसका त्याग किया ? " " नहीं, मैंने ही यह विवाह नहीं होने दिया । " " क्यों मित्र ? " " कौशाम्बी की कल्याण - कामना से । " " तो क्या वयस्य यौगन्धरायण यह समझते हैं , कि गान्धरराज की मैत्री इतनी हीन है ? उससे तो सम्पूर्ण उत्तर कुरु तक महाराज उदयन का प्रभाव हो जाता। " “ वह तो है ही मित्र ! कौशाम्बीपति ने जब से देवासुर - संग्राम में क्रियात्मक भाग लिया है, तब से देवराज इन्द्र उन्हें परम मित्र मानता है। " “ सुनकर सुखी हुआ ; किन्तु कलिंगसेना के विवाह में क्या राजनीतिक बाधा थी ? " “मैं अवन्तीनरेश महाराज चण्डमहासेन को क्रुद्ध नहीं करना चाहता था । आप तो जानते ही हैं कि कन्याहरण के बाद वे बड़ी कठिनाई से प्रसन्न हुए थे और मालव - मित्रता की कौशाम्बी राज्य को बड़ी आवश्यकता है मित्र ! " था । "
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