पीछे से उनके कन्धे पर हाथ रखा। सोम ने पीछे फिरकर देखा, कुण्डनी थी । कुण्डनी ने संकेत से उन्हें एक ओर ले जाकर कहा - “ बड़ी बात हुई जो तुम्हें देख पाई । मैं तुम्हारे लिए बहुत चिन्तित थी । परन्तु राजनन्दिनी की खटपट में मैं तुम्हारे लिए कुछ न कर सकी । तुम क्या सीधे श्रावस्ती से अभी चले आ रहे हो ? " “ हां , मुझे अशक्तावस्था में राह में अटकना पड़ा । परन्तु मैं मार्ग- भर तुम्हें खोजता आया हूं। " ___ " मुझे या चंपा की राजनन्दिनी को ? " कुण्डनी सोम पर एक कटाक्ष करके हंस दी । सोम भी हंस पड़ा । उसने कहा - “ राजकुमारी हैं कहां ? " “ वह इसी दस्यु यवन दास - विक्रेता के फंदेमें फंस गई थीं । " " तुम रक्षा नहीं कर सकी कुण्डनी ? ” सोम ने सूखे कण्ठ से कहा । " नहीं मैंने उस समय उन्हें छोड़कर पलायन करना ही ठीक समझा। " " अरे , तो यह दुष्ट क्या उन्हें दासी की भांति बेचेगा ? ” सोम ने क्रोध से नथुने फुलाकर खड्ग पर हाथ रखा और एक पग आगे बढ़ाया । कुण्डनी ने उनका हाथ पकड़ लिया । कहा - “ बेवकूफी मत करो, यह तो उन्हें बेच भी चुका। " " बेच चुका , कहां ? ” “ अन्तःपुर में । अन्तःपुर का कंचुकी मेरे सामने स्वर्ण देकर उन्हें महालय में ले गया। ” " और तुम यह सब देखती रहीं कुण्डनी ? ” सोम की वाणी कठोर हुई । " दूसरा उपाय न था । परन्तु अन्तःपुर की सब बातें मुझे विदित हैं । " " कौन बातें ? " __ “ गान्धार - कन्या कलिंगसेना का महाराज प्रसेनजित् से विवाह होगा। उस अवसर पर पट्टराजमहिषी मल्लिका नियमानुसार उन्हें एक दासी भेंट करेंगी। इस काम के लिए बहुत दासियां इकट्ठी की गई थीं । उनमें कंचुकी भाण्डायन ने चम्पा की राजकुमारी को ही चुना , वह उन्हें मुंह- मांगे मूल्य पर क्रय कर ले गया और राजमहिषी मल्लिका ने उन्हीं को विवाह के उपलक्ष्य में महाराज को भेंट करने का निर्णय किया है । " ___ " परन्तु यह अत्यन्त भयानक है कुण्डनी ! यह कदापि न होने पाएगा । तुम इस सम्बन्ध में कुछ न करोगी? “ क्यों नहीं ! हमें राजनन्दिनी को बचाना होगा । परन्तु , क्या तुम साहस करोगे? " __ “ यदि प्रसेनजित् को अपने सेनापति बंधुल पर अभिमान है, तो कुण्डनी मैं अकेला ही कोसल का गर्व भंग करूंगा। मगध -पराजय का पूरा बदला लूंगा । " " तुम अकेले यह कर सकोगे ? " " अकेला नहीं , यह खड्ग भी तो है! ” । “ खड्ग पर यदि तुम्हें इतना विश्वास है तो दूसरी बात है। परन्तु तुम यहां मुझसे कुछ आशा मत रखना । ” " तो तुम राजनन्दिनी पर इतनी निर्दय हो ? तब इन्हें इस विपत्ति में डालने को
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