पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२४

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और ये सेट्ठिपुत्र अपनी रत्नराशि जिस पर लुटाने को दृढ़-प्रतिज्ञ हैं।" अम्बपाली यह कहकर रुकी। उसका अंग कांप रहा था और वाणी तीखी हो रही थी। परिषद्-भवन में सन्नाटा था।

उसने फिर कहा—"भन्ते, मैं अपना अभिप्राय निवेदन कर चुकी। यदि सन्निपात को मेरी शर्ते स्वीकार हों...तो मैं अपना सतीत्व, स्त्रीत्व, मर्यादा, यौवन, रूप और देह आपके इस धिक्कृत कानून के अर्पण करती हूं। यदि आपको मेरी शर्तें स्वीकार न हों तो मैं नीलपद्म प्रासाद में आपके वधिकों की प्रतीक्षा करूंगी।"

इतना कहकर उसने अवगुण्ठन से शरीर को आच्छादित किया और वृद्ध महानामन् का हाथ पकड़कर कहा—"चलिए!" महानामन् अम्बपाली के कन्धे का सहारा लिए संथागार से बाहर हो गए। वैशाली का जनपद मूढ़-अवाक् होकर देखता रह गया।