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62. अजित केसकम्बली

पूर्वाराम मृगार-माता प्रासाद भी बनकर तैयार हो गया था। यह भवन श्रावस्ती ही में नहीं, प्रत्युत जम्बू-द्वीप भर में अद्वितीय विहार था। इसमें एक सहस्र प्रकोष्ठ थे। यह विहार सात-तल्ला था। सेट्ठि मृगार की पुत्रवधू विशाखा ने इसे अपने एक हार के दाम से तैयार कराके बुद्ध को भेंट करने का निश्चय किया था, परन्तु अनाथपिण्डक के जैतवन विहार में भ्रमण गौतम ने वर्षावास स्वीकार कर लिया, इससे सेट्ठि मृगांर की इच्छा पूरी नहीं हुई।

अजित केसकम्बली अपने शिष्यों-सहित सरयू-तीर के अपने आश्रम में मृगचर्म पर बैठे थे। उनका शरीर बिलकुल काला था, डील-डौल विशाल और आंखें चमकदार थीं। वे एक साधारण सूती वस्त्र कमर में लपेटे थे। स्वच्छ जनेऊ उनके कज्जलकृष्ण अंग की शोभा बढ़ा रहा था। उनके सामने महाशाल लौहित्य एक आसन पर बैठे थे। इनका अंग दुबला-पतला और वर्ण गौर था। कंठ में जनेऊ और सिर पर बड़ी चोटी थी। उनकी आंखें बड़ी-बड़ी और वक्ष विशाल था।

अजित ने कहा-"तो महाशाल लौहित्य, गौतम श्रावस्ती से आ गया है न?"

"हां आचार्य, और इस बार उसके ठाठ निराले हैं। उसने बहुत-से विश्रुत ब्राह्मणों को भी शिष्य बना लिया है।"

"हां-हां, ऐसा तो होना ही था महाशाल! इन मूर्ख ब्राह्मणों का बेड़ा डूबा। मैंने तो तुमसे बार-बार कहा है कि ब्राह्मण याज्ञवलक्य, जैविलि और उद्दालक ने पुराने यज्ञवाद को गौण करके ब्राह्मवाद का जो ढकोसला खड़ा किया था और उनके गुरु प्रवाहण ने जो पुनर्जन्म की गढ़न्त गढ़ी थी, उसका एक दिन भण्डाफोड़ होगा ही। अब तुम देखोगे कि विदेह जनक के सारे प्रयासों पर पानी फिर जाएगा। उसका ये बड़ी-बड़ी परिषदें बुलाना, ब्रह्मवाद पर शास्त्रार्थ कराना और बड़े-बड़े दान देना, सब व्यर्थ होगा और लोग स्वतन्त्र रीति से विचार प्रारम्भ कर देंगे। अब इसी शाक्य गौतम ही को लो। उसने एक और ढकोसला चलाया है। क्यों महासामन्त पायासी, तुम तो उसके पिता शुद्धोदन से मिले थे। क्या कहता है वह अपने पुत्र के सम्बन्ध में?"

महासामन्त पायासी का ताम्रवर्ण शरीर, लाल-लाल आंखें और बलिष्ठ भुजदंड एवं भारी-भारी गलमुच्छे बड़े प्रभावशाली थे। उन्होंने हाथ जोड़कर कहा-"वह भी उसका शिष्य हो गया है आचार्य! वही नहीं, कपिलवस्तु के सारे ही शाक्य उसके शिष्य हो गए हैं। शुद्धोदन को इससे बड़ा लाभ है आचार्य! वह कोसल के प्रभुत्व का जुआ उतार फेंकना चाहता है। अब तक तो शाक्यगण कोसल के अधीन था, अब गौतम का पिता अनुगत शिष्य होने से शुद्धोदन का आदर बढ़ गया है। उधर मगध-सम्राट भी उसका बहुत सम्मान करने लगे हैं, वे भी गौतम के शिष्य हो गए हैं।"