आपस्तम्ब-"किन्तु मित्र इस व्यवस्था से तो संकरों का अधिक संगठन होगा। वे और सबल होंगे। वे आर्यों के विद्रोही हो जाएंगे। संकरों की प्रत्येक जाति में एक प्रकार का गर्व उत्पन्न हो जाएगा, क्योंकि प्रत्येक जाति यह समझने लगेगी कि किसी-न-किसी जाति से तो हम श्रेष्ठ हैं ही। फिर जहां कहीं धन और शक्ति का आधिक्य हो गया, वहां तो यह गर्व और बढ़ जाएगा, तथा भीतरी भेद उत्पन्न होने लगेंगे। देश-भेद, रहन-सहन और खान-पान में अन्तर पड़ जाएगा। विवाह भी उन्हीं जातियों में होने लग जाएंगे। ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों तथा शूद्रों की भी अनेक उपजातियां बन जाएंगी। उन्हीं से उनके विवाह और खान-पान सीमित हो जाएंगे। संकरों की भी अनगिनत जातियां बन जाएंगी। इससे आर्यों का सम्पूर्ण संगठन नष्ट हो जाएगा। उदाहरण के लिए, कोसल के अधिपति प्रसेनजित् के परिणाम की ओर आपका ध्यान आकर्षित करता हूं।"
गौतम-"चाहे जो भी हो, हम रक्त की शुद्धता को नष्ट नहीं होने देंगे। अब तक विवाह की तीन विधियां थीं-एक अग्निप्रदक्षिणा, दूसरी सप्तपदी लाजहोम, तीसरी शिलारोहण। मैं अब से पांच विधि स्थापित करता हूं; चौथी कन्यादान और पांचवीं गोत्रों का बचाव। आर्यों का विवाह इन पांच विधियों के पूर्ण हुए बिना सम्पादित न हो।"
वसिष्ठ-"ऐसा ही हो। अब मैं क्षेत्रज पुत्र को दायभाग में दूसरा स्थान देता हूं।"
गौतम-"मैं स्वीकार करता हूं।"
बोधायन-"मैं मतभेद रखता हूं। क्षेत्रज का स्थान मैं तीसरा स्थापित करता हूं।"
आपस्तम्ब-"मैं विरोध करता हूं। मैं नियोग की प्रथा को बन्द कर देने के पक्ष में हूं। किसी सभ्य पुरुष को अपनी स्त्री कुटुम्बी को छोड़कर किसी दूसरे को नहीं देनी चाहिए। नियम के अनुसार पति को छोड़कर उसे दूसरे पुरुष का हाथ अज्ञात पुरुष का हाथ समझना चाहिए।"
गौतम-"मैं यह मर्यादा स्थापित करता हूं कि जिस विधवा स्त्री को सन्तान की इच्छा हो, वह गुरुजनों की आज्ञा लेकर देवर से ऋतुगमन कर ले। देवर का अभाव हो तो सपिण्ड, सगोत्र, समान प्रवर या सवर्ण पुरुष से कर ले। वह दो से अधिक सन्तान न उत्पन्न करे। सन्तान उसकी है, जो उत्पन्न करे। यदि पति जीवित हो तो सन्तान दोनों की है।"
हारीत-"मैं सहमत हूं।"
भारद्वाज-"जो विवाहिता किन्तु अक्षतयोनि ही है, उसे मैं कन्या घोषित करता हूं। उसका नियमानुसार विवाह हो।"
बोधायन-"सम्भोग हो भी गया हो, परन्तु विधिवत् विवाह न हुआ हो, तो वह भी कन्या ही है। उसका विवाह विधिवत् हो।"
पाणिनि-“जो अविवाहिता है वह कन्या है। पर पुरुष से भोगी जाकर भी उसका कन्या-भाग दूषित न हो। विवाह-विधि होने के बाद पुरुष-संग ही से उसका कन्या-भाव छूटे।"
वसिष्ठ-"तो मैं छः कन्याएं घोषित करता हूं-1. जो अविवाहिता और अक्षत है, 2. जो अविवाहिता है और क्षत है, 3. जो विवाहिता है और अक्षत है, 4. साधारण स्त्री, 5. विशिष्ट स्त्रियां, 6. मुक्तभोगिनी।"
गौतम–"यदि किसी स्त्री का पति एकाएक विदेश चला जाए, तो वह छः वर्ष